बवासीर होम्योपैथिक औषधियां


होम्योपैथिक होम्योपैथिक विधि से रोगी की चिकित्सा की जाती है, केवल रोगी की ही नहीं। रोगी की सभी शारीरिक एवं मानसिक स्थिति, रोग के वास्तविक कारण, लक्षणों के आधार पर औषधि का चुनाव किया जाता है। प्रत्येक रोगी की औषधि वैसी ही रोग स्थिति वाले दूसरे रोगियों से अलग हो सकती है। होम्योपैथिक सिद्धान्त अनसार स्वस्थ व्यक्ति में जो औषधि कोई रोग लक्षण उपजा सकती है, रोगी व्यक्ति में मौजूद उन्हीं लक्षणों के आधार पर औषधि चुनाव रोग मुक्त कर सकता है। होम्योपैथी के सदृश्य विधान यानि के अनुसार और के आधार पर मूल कारण जानकर यदि पूरी निष्ठा से उचित औषधि का चुनाव किया जाए तो बवासीर तो क्या किसी भी भंयकर रोग जैसे कि कैंसर या दसरे गंभीर रोग जो कई प्रकार की शल्य क्रियाओं में भी चुनौतियां पूर्ण होते हैं, होम्योपैथिक औषधि की अल्प मात्राओं से ठीक होते देखे गए हैं। बवासीर उस स्थिति को कहते हैं जिसमें एनल नाल यानि गदानाल की रक्त वाहिकाएं बढ़ जाती हैं, संकुचित हो जाती हैं और उनमें रक्त स्राव होता है। गुदा द्वार की नसें फूल कर छोटे-छोटे ट्यूमर अर्थात् मटर, मुनक्का, अंगूर या इससे भी बड़े आकार के मासांकुर हो जाते हैं जो अत्यंत कष्टदायक होते हैं। मलद्वार के बाहर या अंदर इस प्रकार के उत्पन्न अर्शाकुर को बवासीर, या कहते हैं। बवासीर दो प्रकार यानि होते हैं। कुछ लोगों को दोनों प्रकार की बवासीर की शिकायत - हो सकती हैपहली प्रकार यानि में मलाशय की के बाहर बवासीर होता है, वह चर्म से ढका रहता है परन्तु मस्से बाहर निकल कर फूल जाते हैं। मासांकर छोटे रहने तक तो पीड़ा नहीं होती किन्तु जलन, गर्मी, कब्जियत आदि बने रहते हैं। बड़े हो जाएं तो सम्पूर्ण मलद्वार में कष्ट होता है। इसमें और दूसरी प्रकार के बवासीर से रक्त नहीं गिरता। दूसरी प्रकार यानि में रक्त आता है, इसे खूनी बवासीर कहते हैं। इसमें मस्से गुदा के भीतर चसक के दर्द, घाव, खुजली, सूजन आदि पैदा करते हैं। रक्त आता है तथा इसमें मल अवरोध रहता है। कई लोगों को भी होती है जिसमें कुछ भाग म्यूकस मैम्ब्रेन से तथा कुछ चमड़े से ढका रहता है। मिश्रित बवासीर के इलावा कुछ लोगों को की भी शिकायत हो सकती है जिससे आंव का स्राव अधिक होता है। या कम ही होते हैं। कारण :- बवासीर मुख्यता कब्ज का ही दुष्परिणाम है। इसके अलावा अन्य कारण हैं अरुचि एवं मंदाग्नि होना, यकृत में रक्त की अधिकता, अधिक भोजन करना, मद्यपान, शराब, ताड़ी, दारू, भांग, गांजा आदि का सेवन करना. चाय एवं धूम्रपान, गरिष्ठ भोजन करना, अधिक मिर्च-मसालों का सेवन, तेज जुलाब तथा दस्तकारक औषधियों का अधिक सेवन, पेशाब संस्थान में गड़बड़ी, अत्यधिक मैथन करना. शारीरिक परिश्रम का अभाव, स्पंज या गददीदार कर्सी पर अधिक बैठना, लम्बे समय तक का काम करना, क्रोध-चिंता-शोक एवं निराशा से, लम्बे समय तक रात्रि जागरण की आदत, विलासिता, आनुवांशिक और वंशाणुगत दोष, हृदय रोग, यक्ष्मा, खांसी तथा लम्बे समय तक तेज एवं गर्म औषधियों का सेवन करने से लक्षण :- पीड़ित व्यक्ति लम्बे समय से १ मलावरोध (कब्ज) के शिकार होते हैं। गुदा द्वार का नसे फूलकर चने एवं मटर आकार की हो जाती हैं। मलद्वार में सुरसुरी, खुलजी एवं दर्द होता है। गुदा मार्ग में बोझ और मलाशय में अटकने की अनुभूति। खून गिरता है, खून की पिचकारी-सी चलती है। पाखाना करते समय जब मस्से बाहर आते हैं तो बहुत दर्द होता है। मुंह का स्वाद खट्टा, तीता एवं बेस्वाद होना। हो जाता है।  अर्श का रक्त स्राव अमूमन मलत्याग के पहले या बाद में होता है। मल के साथ नहीं होता और न उसका खन मल के साथ मिश्रित होता है। भोजन :- बवासीर के रोगी को हल्का, पाचक, नर्म, बिना मिर्च-मसाले या तले भोजन करना चाहिए। बवासीर के लिए निम्न होम्योपैथिक औषधियां लक्षणानसार लाभदायक हैं  1. Aesculus Hip 30 :में लाभदायक है। किसी प्रकार के वात रोग उपरान्त बवासीर हो तो विशेष लाभदायक है। रोगी ऐसे महसूस करें जैसे मल द्वार में छोटी-छोटी छड़ियां भरी हों। मल द्वार सूखा, भारीपन, खिंचाव, वेदना, जलन, खुजली।। 2. Collinsonia Cau 30 :- इसके रोगी को कई दिनों तक पाखाना नहीं होता है और मालम होता है कि इसके मल द्वार में लकड़ी के बरादे या काठ की टकडियां या बालू के कण भरे हों। बवासीर से रक्त गिरना, बहुत अधिक दर्द और खजलाहट __के व्यवहार से छटे हुए बवासीर के सेवन से पूर्ण ठीक हो जाते हैं। 3. HamamelicVirQ की प्रसिद्ध औषधि है। गुदा द्वार पर कुचलने जैसे दर्द होता है, मस्से बाहर निकल आते हैं। रक्त स्राव काला, थक्का-थक्का और अधिक मात्रा में गिरता है। कमर में दर्द रहना और पीठ का दर्द होता है। हालांकि होम्योपैथिक इलाज में किसी प्रकार का बाहरी मलहम बगैरह नहीं लगाना चाहिए फिर भी होम्योपैथिक विधि से बना मलहम भी मिलता है। 4. Milefolium 0-200 :- स्त्रियों में 80 प्रतिशत प्रसवकाल में ही अर्श की उत्पति होती है। इसलिए औषधि खुनी-बवासीर विशेषतया गर्भावस्था के दिनों में अर्श रोग में असहनीय दर्द एवं बिना दर्द के काफी खून गिरने पर बहुत लाभदायक है। 5. Badiage 3 एक्स 200 एवं उच्च शक्तियां :- यह सोरा विषनाशक दवा है। इसके रोगी के शरीर में जगह-जगह गांठें होती हैं, मल द्वार में लीधि के रूप में भाला मारने जैसा दर्द होता है। रूस में यह अर्श रोग की श्रेष्ठ औषधि के रूप में विख्यात है। इसका मूलार्क शुद्ध जल में डालकर और कपडा भिगोकर लगाने से बड़े और कड़े मस्से भी गल जाते हैं। 6. Antimonium Crudum 3-200 :खट्टा खाने की तीव्र इच्छा, कब्ज एवं अतिसार पर्यायक्रम से आए, मल द्वार के चारों ओर जलन एवं खुजली, रक्त स्राव, आंव युक्त हो, मलद्वार से निरन्तर स्राव टपकता होश्लेष्मा स्रावी बवासीर की यह मार्च एकमात्र दवा है। 7.Acid Sulth 3-200 :- इसका रोगी र से जिसे र दर्द धीरे-धीरे प्रारम्भ होता है तथा मल त्यागने - के बाद समाप्त हो जाता है। रोगी को काफी लिए लिए से घृणा और शराब पीने की बलवती इच्छा रहती है। 8. Paeonia Q3 शक्ति :- बवासीर की जानी-मानी औषधि है। मलाशय के चारों .. तरफ का रंग नीला एवं असहनीय दर्द होना, "" खुजली, जलन एवं कुतरने जैसी पीड़ा होती .. है। रक्तस्रावी मस्से बाहर निकलते हैं और में उसमें इतना दर्द होता है कि रोगी समझता है कि मृत्यु हो जाए तो अच्छा है। प्रत्येक बार पाखाना होने पर उसे 3-4 घंटे तक असीम कष्ट होता रहता है। को नर्वस मलहम या में बवासीर पर लगाने से चैन मिल सकता है। प्याज 9. नक्स बाम एव सल्फर :- रात को कुछ देर हैंदेते रहने से कब्ज और बवासीर में बहुत लाभ होता है। 10. Ratania-3-30 :- दोनों प्रकार की बवासीर में लाभदायक है। मलाशय के चारों तरफ फटे घाव, भगन्दर, खुजली, जलन जैसे मिलना कि वहां मिर्च बुर्क की हो। मल त्यागने से पूर्व एवं शौच समय दर्द होता है। इसके अतिरिक्त एड्स, एक्ट, एपिस, सिलिसिया, हैं थाजा, कैल्केरा, फ्लूअर तथा अन्य अनेक मिनरल औषधियां हैं जो रोगी के स्वभाव एवं रोगावस्थानुसार देते हैं।