प्राणवहस्रोतस की उपयोगिता एवं मुख्य व्याधियां


श्वसन क्रिया का संचालन प्राण वायु एवं उदान वायु के अधीन होता है। प्राणवह स्रोतस के माध्यम से प्राण वायु एवं उदान वायु के द्वारा उसके प्राकृत कर्म श्वसन क्रिया का संचालन सुचारू रूप से चलता रहता है जिनसे स्रवण होता है, उन्हें स्रोतस कहते हैं। स्रवण का अभिप्राय है कि स्रोतसों से रसादि धातुओं में से पोषक तत्वों का स्रवण स्थायी धातुओं में होना। आयुर्वेदानुसार तेरह प्रकार के स्रोतसों का वर्णन किया गया है जिनमें सर्वप्रथम प्राणवह स्रोतस है। स्वस्थ रहने के लिए इन स्रोतसों का प्राकृत रूप से कार्य करना आवश्यक है। प्राणवह स्रोतस के अंर्तगत फुफ्फुस तथा रसवाही धमनियों का समावेश किया गया है। प्राणवह स्रोतस के विकारों में किसी न किसी रूप में श्वास-प्रश्वास की विकृति देखने को अवश्य मिलती है। यदि कफ दोष प्रकुपित होकर प्राणवह स्रोतस का अवरोध करता है तो भी श्वसन क्रिया बाधित होती है। धातुओं के क्षय होने से, मल-मूत्र के वेगों को रोकने से, रूक्ष आहारादि के सेवन से, अपनी क्षमता से अधिक कार्य करने से प्राणवह स्रोतस दूषित होता है। इसके कारण श्वास गति का अधिक तेज होना, रूक-रूक कर अथवा कष्ट के साथ श्वास लेना यह लक्षण दिखाई देते हैं। प्राणवह स्रोतस से संबंधित मुख्य व्याधियां निम्नलिखित हैं :- हिक्का, श्वास, कास, राजयक्ष्मा, पार्श्वशूल, हृदय रोग। आगे हम इनके विषय में जानेंगे।


हिक्का : मुख से द्वारा हिक्-हिक् शब्दों के साथ श्वास का बाहर आना हिक्का कहलाता है, आमतौर पर इसे हिचकी कहते हैं। ऐसे समस्त कारण जिनसे श्वास मार्ग पर विपरीत प्रभाव पड़ता है जैसे गुरु, विदाही, रूक्ष, शीतल आहार का सेवन, धूल, तेज वायु का सेवन आदि हिक्का के कारण होते हैं। यह कफ एवं वात के प्रकोप से होता है। आयुर्वेदानुसार हिक्का पांच प्रकार की होती है जिनमें से क्षुद्रा एवं मुख्य व्याधियां एवं अन्जा हिक्का स्वयं ही शांत हो जाती है, अन्य तीन महा, गम्भीर तथा व्यपेता असाध्य होती है। दोष श्वास : श्वास प्राणवह स्रोतस से संबंधित प्रमुख व्याधि है जिसमें श्वसन क्रिया में कष्ट पार्श्वशूल होता है। कफ वृद्धि से प्राणवह स्रोतस में तथा अवरोध उत्पन्न हो जाता है जिससे वायु कुपित होकर श्वास रोगों को उत्पन्न करती है। आचार्य पार्श्व चरक ने इसे गम्भीर एवं प्राणहर माना है। इसकी उत्पत्ति में मंदाग्नि एवं आम का भी दोष विशेष महत्व है। आयुर्वेद में पांच प्रकार के श्वास का वर्णन किया है जिसमें से तमक श्वास आधुनिक शास्त्र में वर्णित Bronchial Asthma से साम्य रखता है। तमक श्वास में मुख्य विकृति श्वसनिकाओं में होती है, प्राणवह मलद्रव्यों की उत्पत्ति, अतिस्रव एवं उत्तेजना से श्वसनिकाओं में संकोच एवं अवरोध उत्पन्न होता है।


कास : प्रकोपक कारणों से दूषित प्राण वायु, उदान वायु से मिलकर फूटे कांसे के पात्र के शब्द के समान शब्द को उत्पन्न करता हुआ मुख से निकलता है। इसका कारण अनेक विजातीय द्रव्यों या उत्तेजक द्रव्यों का श्वसन सिराओं प्रणाली में प्रविष्ट होना है। जीवाणु संक्रमण भी कास का कारण है।


हृदय रोग : निदानों के सेवन से विकृत दोष किया रस धातु को विकृत करके हृदय में पहुंच कर हृदय रोगों को उत्पन्न करते हैं। हृदय का मुख्य कार्य रस एवं रक्त का विक्षेपण करना है। विकृतकारक निदानों के सेवन से हृदय में दो प्रकार से विकृति हो सकती है। हृदय की स्थानस्थ धातु की विकृति अथवा हृदय विक्षेपण में विकृति। हृदय रोग होने पर विवर्णता, ज्वर, कास, हिक्का, श्वास, मोह, तृष्णा, वमन, वेदना आदि लक्षण मिलते हैं।


राजयक्ष्मा : राजयक्ष्मा का सामंजस्य आधुनिक चिकित्सा में वर्णित Tuberculosis से किया जा सकता है। यह एक संक्रामक रोग है तथा व्याधियां जीवाणु Mycobecterium tuberculii से होता है। आयुर्वेद शास्त्र के अनुसार यह कफ दोष के कारण रसवाही स्रोतस के अवरोध होने पर या तो शुक्रधातु के क्षय होने से होता है।


पार्श्वशूल : प्रकुपित कफ शरीर के कुक्षि तथा पार्श्व प्रदेश में स्थित होकर वायु का अवरोध करती है जिसके कारण कुक्षि तथा पार्श्व में शूल या पीड़ा होती है जिसके कारण रोगी को नींद भी नहीं आती। वात एवं कफ दोष के कारण होने वाले इस रोग को पार्श्वशूल कहते हैं। उपरोक्त सभी रोग प्राणवह स्रोतस से संबंधित है। इसके अतिरिक्त कुछ व्याधियां है जैसे कि क्षतक्षीण, शोष, स्वरभेद आदि रोग भी प्राणवह स्रोतस से संबंधित है। प्राणवह स्रोतस का मूल हृदय एवं रसवाही धमनियां माना गया है। कुछ आचार्य प्राणवाही स्रोतस को वक्षगुहा में स्थित फुफ्फुस को मानते हैं तथा इनका मूल हृदय से फुफ्फुस में जाने वाली धमनी एवं श्वासनलिका को मानते हैं। हृदय से धमनियों द्वारा रक्त फुफ्फुस में जाता है तथा श्वासनिकाओं से प्राण वायु को ग्रहण कर सिराओं द्वारा वापस हृदय में आ जाता है। इस प्रकार से प्राणवह स्रोतस को आधुनिक शास्त्र में वर्णित Respiratory System से सामंजस्य किया जा सकता है।