सबको पेयजल पहुंचाने की चुनौती


आजादी के बाद से ही बिजली पानी को केंद्र में रखकर चुनाव लडे गए, लेकिन आज भी बिजली, पानी जैसी बुनियादी सुविधाएं अपेक्षा के अनुरूप उपलब्ध नहीं हो सकी हैं। 16वीं लोकसभा चुनाव के समय भारतीय जनता पार्टी ने अपने घोषणा पत्र में बिजली, पानी, सड़क, शौचालय जैसी बुनियादी विना सुविधाएं आम आदमी तक पहुंचाने का वादा किया था। प्रधान मंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने लाल किले से अपने भाषण में 1000 दिनों के भीतर 18,452 गांवों तक बिजली पहुंचाने का लक्ष्य रखा था जिसे समय से पहले पूरा कर लिया गया। इसके बाद हर घर बिजली पहुंचे इसके लिए सौभाग्य योजना शुरू की जो सफलता पूर्वक आगे बढ़ी। इसी तरह शौचालय बनवाने के लिए भी अभियान चलाया गया। 2014 में 33 फीसदी परिवारों तक शौचालय सुविधा थी वहीं 2019 में यह अनुपात 99 फीसदी तक पहुंचा गया। जिस देश में योजनाओं की लेटलतीफी का हमेशा रिकॉर्ड रहा हो वहां ऐसी उपलब्धि किसी क्रांति से कम नहीं है। इसी तरह जल प्रबंधन के लिए दुबारा सत्ता में आते ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनावी वादे को पूरा करने हेतु जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय के साथ-साथ पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय को आपस में विलय कर नए जलशक्ति मंत्रालय का गठन कर दिया। मंत्रालय ने अपनी पहली बैठक में ही 2024 तक देश के हर घर तक 'नल से जल' पहुंचाने की महत्वाकांक्षी योजना का लक्ष्य तय कर दिया। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक देश के लगभग 22 फीसद ग्रामीण परिवारों को पानी लाने के लिए आधा किलोमीटर या अधिक दूर पैदल जाना पड़ता है। इनमें अधिकतर बोझ महिलाओं पर पड़ता है। महज 18 फीसद परिवारों के पास ही पाइपलाइन से स्वच्छ पानी पेयजल की सुविधा है। शेष को तालाबों, कुओं, नदी, झरना पर निर्भर रहना पड़ता है। अभी देश के एकमात्र राज्य सिक्किम के लगभग 99 फीसद घरों में नलों से जलापूर्ति की जाती है। गुजरात में लगभग 75 फीसद लोगों को पाइपलाइन से पेयजल मिलता है। जलापर्ति की ऐसी स्थिति के बावजद कई राज्य सरकारें केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम के तहत आवंटित धनराशि का भी उपयोग नहीं कर पाती हैं। नीति आयोग ने 2018 में बताया था कि 60 र करोड भारतीय गंभीर जल संकट से जझ रहे हैं। मिलीहर साल लगभग दो लाख लोग साफ पानी न मिलने से बीमारियों के कारण उनकी मौत अनुमान है कि 2028 तक देश में पानी की मांग दो गुनी हो 12 , जाएगी। यदि इसे पूरा नहीं किया गया तो सकल फीसदी अनुरूप घरेलू उत्पाद में करीब छह प्रतिशत तक गिरावट 2022चुनाव आ सकती है। सबसे चिंता की बात यह है कि देश सहयोग पत्र में 70 प्रतिशत जल भंडार प्रदूषित हो चुके हैं। यह रुपये बुनियादी विना है कि जो वादा ने के उपग्रह प्रक्षेपित कर चुका हो वहां की 82 फीसद ग्रामीण आबादी साफ पानी के लिए तरस रही है। पानी पहुंचाने के लिए योजनाएं तो बहुत बनीं और धन भी आवंटि हुआ, लेकिन जवाबदेही की कमी " और भ्रष्टाचार के चलते सही नतीजे नहीं आ पाए। ग्रामीण इलाकों में पेयजल की समस्या दूर करने के लिए भारत सरकार का पहला ठोस प्रयास 1986 में शुरू हुआ। इसे राष्ट्रीय पेयजल मिशन । नाम दिया गया। इसमें ग्रामीण इलाकों में प्रतिदिन 40 लीटर सुरक्षित पेयजल मुहैया कराने का लक्ष्य तय किया गया। जो सफल नहीं रहा2009 में राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम की शरूआत हुई, लेकिन राजनीतिक-प्रशासनिक इच्छाशक्ति का की कमी की वजह से इसे भी सफलता नहीं मिली। 2014 में मोदी सरकार ने इसे प्रतिस्पर्धा बनाया। नतीजा यह हुआ कि जहां 2013-14 में गांवों में पाइपलाइन से पानी पहुंचाने की वृद्धि दर सबको पेयजल पहुंचाने मोटापा, मधुमेह व उच्च रक्तचाप 12 फीसदी थी वह 2017-18 में बढ़कर 17 फीसदी हो गई। मोदी सरकार ने 2018-19 से 2022-23 तक पांच वर्षों के लिए विश्व बैंक के सहयोग से भूजल प्रबंधन के लिए 6,000 करोड़ रुपये की लागत से अटल भूजल योजना लागू की इसमें उन इलाकों पर फोकस किया जा रहा है जहां भूजल का अतिदोहन करने वाले इलाके फोकस किए गए है। देश में औसत 117 सेंटीमीटर बारिश का महज छह प्रतिशत पाइपलाइन का रखरखाव. पानी की लीकेज, बिजली के वोल्टेज का उतार-चढ़ाव से मोटर की खराबी भंडारण हो पाता हैआर्थिक कठिनाइयां भी आएंगी जैसे ग्रामीण इलाकों में इसे देखते हुए नल से जल को पूरा करने के लिए सरकार ने लचीला दष्टिकोण अपनाने का सोचा है। जिसके तहत भजल और सतह के जल, दोनों का इस्तेमाल किया जाएगा जो क्षेत्र की परिस्थितियों पर निर्भर करेगा। आपूर्ति में संतुलन बनाए रखने के लिए जल संरक्षण पर जोर दिया जाएगा। जिसके लिए सरकार ने जलदूतों की नियुक्ति करने का फैसला किया है।