सोरायसिस रोग का होम्योपैथिक इलाज


सोरायसिस बहुत कष्टकारक जीर्ण चर्म रोग है। सृष्टि के प्रारम्भ से ही इस रोग की भी उत्पत्ति बताई जाती है। पहले यह समझा जाता था कि यह रोग सीलन भरे क्षेत्रों में रहने वाले लोगों में अधिक पाया जाता है। हालांकि अब यह रोग सर्वत्र पाया जाता है। बैंकाक, अरब, इंडोनेशियाई एवं जापनियों में कम पाया जाता है। स्त्री-पुरुष सबको समान रूप से होता है, छिलकों फिर भी पुरुषों को स्त्रियों की अपेक्षा अधिक होता है। चाहे किसी भी अवस्था में हो सकता है परन्तु कम आयु के बच्चों को बहुत कम होता है। पुरातन ग्रन्थों में सोरायसिस को मण्डल कुष्ठ नाम से वर्णन है परन्तु सोरायसिस हर्गिज भी छूत रोग नहीं जैसा कि त्वचा के अन्य रोगों में होता है। वंश परम्परा से इसका कोई सम्बन्ध नहीं चाहे एक ही परिवार के कई रोगियों में सोरायसिस होते देखा गया है। इस निश्चित रोग का अधिक प्रकोप वर्षा ऋतु के अंत में और शीत ऋतु के प्रारम्भ में अधिक होता है। खुश्क और गर्म मौसम में यह रोग अक्सर कम हो जाया करता है। रोग का आरम्भ छोटे से स्पष्ट सीमाओं वाले उभार (छोटे से दाने) से होता है जिसके ऊपर बहुत पतला-सा सफेद छिलका चिपका होता है। सोरायसिस की मुख्य पहचान है कि मसूर के दाने समान उस छोटे से उभार पर सफेद चमकदार महीन छिलका चिपके रहता है। यह उभार धीरे-धीरे फैलना आरम्भ कर देता है। यह रोग कभी-कभी 2 वर्षों तक एक दो उभारों तक ही सीमित रहता है और फिर फैलकर यह उभार आपस में मिलकर सर्पाकार हो जाते हैं और शरीर के बडे भाग में फैल जाते हैं। उभार चाहे छोटे हो या । बड़े हो परन्तु चांदी की तरह सफेद छिलका ढीला-सा चिपका रहता है और खींचने से उतर भा जाता है। सोरायसिस रोग मख्यतया कमर पीठ, घुटना, धड़, कोहनी, पिंडलियां, नितम्ब और पेट पर होता है। सिर और हाथ पैर की तलियों पर कम ही होता है। सिर पर उभरे रोग से गंजापन नहीं होता और चकत्तों पर न खाज, जब न जलन और न ही पीप या रिसाव होता है जिन परन्तु यह देखने में बड़े भद्दे लगते हैं। यह सूखी शुक्र है कि इस रोग से चेहरा प्रभावित नहीं जाती होता। त्वचा से संक्रमण नाखूनों में और बढ़ने Tuberculinum पर आधे से एक इंच व्यास के गोल चकत्ते रोग उभर आते हैं। चकत्तों के ऊपर से मछली के में छिलकों की तरह चमकदार छिलके उतरना इस इस Ignatia रोग का निर्णायक लक्षण है। आमवात और कारण जोड़ों के दर्द के साथ सोरायसिस का विशेष cicinta लगाव देखा गया है। यदि किसी रोगी को दोनों जो हो तो देखना यह होता है कि कौन-सा कानों एक-दूसरे का कारण हैं। स्त्रियों में गर्भधारण अतिरिक्त हो जाने पर पूरे नौ महीने तक यह रोग अपने ब्रोमाइडआप शान्त हो जाता है और प्रसव के बाद विभिन्न अपने आप आ विराजता है। इस रोग के होने के रोगावस्थानिश्चित कारण तो अभी स्पष्ट नहीं फिर भी जाती ऐसा माना जाता है कि क्रोनिक रोगों का कारण उपजी कमजोरी, शोक, सन्ताप, चिन्ता, भय, औषधि क्रोध एवं मानसिक आघात हैं। सुबह-सवेरे की शील सूर्य किरणों में होने कारण जराबहुत लाभदायक है। इस रोग का इलाज देर तक करना होता है इसलिए धैर्य रखना चाहिए। सल्फरहोम्योपैथी में औषधि चुनाव रोगी की अवस्था काली एवं प्रकृति अनुसार होता है। कुछ विशिष्ट रोग होम्योपैथिक औषधियां निम्न प्रकार हैं Arsenic Acid :- इसके सेवन से उभार अधिक लाल और उभर जाते हैं। यह इस औषधि का मछली अच्छा लक्षण है। जलन होती है जिसे गर्भाइश का से आराम मिलता है  KaliBrom :- जब छाती और कन्धों पर रोग हो तो यह प्रभावकारी है। Mezereum 200 :- हथेलियों पर खारिश बिल्कुल यह गोइश से बढ़ती है। Petroleum 200 :- यदि सर्दियों में ठंड से बढे तो सप्ताह में एक बार देनी होती है। Thyroidinum 3x :- युवा लड़कियों के लिए जब बहुत दुखदायी-कष्टकारक खुजली हो जिन रोगियों को रोग हो, चमड़ी सूखी हो तथा मोटापा हो तो यह औषधि दी जाती है। Tuberculinum 200 सोरायसिस का जीर्ण रोग विशेषकर उन रोगियों को जिनके परिवार में की हो Ignatia Amara 200 :- यदि कलह या क्रोध कारण रोग बढे तो यह औषधि निर्धारित है। cicinta viroen जलन शील दर्द वाले केन्द्र जो अधिक दर्द हो यदि जरा-सा दुख जाए। कानों पर कई दुखदायी इसके अतिरिक्त सोराइनम, सल्फर, रेडियम, ब्रोमाइड, थूजा, नैट्रम आर्स, काली आर्स जैसे विभिन्न औषधियां हैं जो इस रोग में रोगी की रोगावस्था, स्वभाव एवं आवश्यकतानुसार दी जाती है। यदि कलह या क्रोध कारण रोग बढ़े तो यह औषधि निर्धारित है। Cicuta Virosa :- जलन शील दर्द वाले केन्द्र जो अधिक दर्द हो यदि जरा-सा दुख जाए। कानों पर कई दुखदायी इसके अतिरिक्त सोराइनम, सल्फर, रेडियम ब्रोमाइड, थूजा, नैट्रम आर्स, काली आर्स जैसे विभिन्न औषधियां हैं जो इस रोग में रोगी की रोगावस्था, स्वभाव एवं आवश्यकतानुसार दी जाती है। सोरायसिस में खटाई, मिर्च, मसाले, मांस, मछली का प्रयोग वर्जित है। (मांस, मछली) का प्रयोग जितना कम हो बेहतर है। शरीर को देर तक पानी में भिगोये न रखें। की जगह शाकाहारी भोजन करना चाहिए और इलाज के दौरान शराब सेवन बिल्कुल न किया जाए। ऐसा भी कहते हैं कि यह रोग इसी रोग से पीडित मछली खा लेने से होता है। प्रसन्नसित एवं उत्साह, उभंगपूर्ण रहने स लाभ-शाघ्र आर स्थाई रहता है।