वृद्धावस्था में शरीर और स्वास्थ्य की सुरक्षा


स्वास्थ्य वृद्धावस्था के विषय में अंग्रेजी के महान् लेखक विलियम शेक्सपायर का यह उक्त बहुत हा सारगर्भित, सच्ची और गहन है : 'वृद्धावस्था जीवन की नाटिका का अंतिम दृश्य है, अनेक विस्मयकारी घटनाचक्रों से भरे जीवन-इतिहास की अंतिम परिणति है। वृद्धावस्था में मनुष्य दुबारा बच्चा बन जाता है, एक विस्मृति का अंत है क्योंकि वह दांतों से वाट का लोप अर्थात हर चीज का अभाव हो जाता है।' संस्कत में बुढापे को 'जरावस्था' के नाम से भी पुकारा जाता है अर्थात जब शरीर का धीरे-धीरे क्षरण होने लगता है तो जरा या वृद्धावस्था का आगमन होना समझा जाता है। बुढ़ापे में शरीर के प्रायः सभी अंग कमज़ोर पड़ जाते हैं, काम करने की शक्ति और क्षमता का ह्रास होने लग जाता है, काम के प्रति अरुचि, भोजन को पचाने में कठिनाई. सांस. हृदय, मस्तिष्क. नाडी-तंत्र. प्रावक अगा का काय-क्षमता का हास, सोचने की शक्ति का धीमा होना आदि ऐसे लक्षण हैं जो कि मनुष्य को इस बात का एहसास दिलाने का प्रयास करते हैं कि अब जीवन-यात्रा का अंतिम पड़ाव बस किसी समय आ सकता है। एक मान्यता यह भी है कि कोई वृद्ध तभी होता है जब उसके मन में यह धारणा घर कर ले कि वह वास्तव में वृद्ध होने लगा है या हो गया है। आदमी शरीर से बूढा होता है, मन से नहीं। और असली बुढ़ापा तभी समझा जाता है जब मन भी बुढ़ा हो जाए। वृद्धावस्था मन:स्थिति पर निर्भर है। वृद्धावस्था के लक्षण :- काम करने की ' क्षमता का हास होते जाना। थोडा-सा कार्य या श्रम करने के बावजूद भी थकान महसूस होना। थोड़ा-सा तेज चलने से सांस फूलने लगना और अंगों में पीड़ा होना। पीर की नाही का टीला पट जाना और सिकुड़ना कामकाज में मन न लगना और जीवन के प्रति उदासीन होना। परिवारिक और सामाजिक कार्यों में रुचि न लेना। यहां तक कि अपने शरीर की देखभाल भी न कर पाना। स्वभाव कड़ा, चिडचिडा, उखड़ा और , संगत होना। समझौता करने और दूसरों की भावनाओं का आदर-सम्मान करने की भावना का अभाव। जोड़ों में जरा-सा श्रम के बाद भी दर्द होने लगना भोजन के प्रति अरुचि और जो भी थोड़ा-बहुत भोजन खाया जाये, उसका पाचन न हो पाना, श्रम के अभाव के कारण कब्ज होना या पाचन-क्रिया मंद पड़ जाने से पतले दस्त लगना। मौसम के परिवर्तन का शरीर से सामना करने में असमर्थता और रोगों का आक्रमण जल्दी-जल्दी होना। मानसिक तनाव और शारीरिक श्रम के प्रति अनिच्छा। यहां तक कि अपनी दैनिक दिनचर्या से संबंधित कार्यों को भी अनमने भाव से कर पान और जीवन को एक तरह से बोझ समझना। शरीर के सुरक्षा-तंत्र का कमज़ोर पड़ जाना। जिस रोग का युवाकाल में संक्रमण देरी से होता है और संक्रमण होने की अवस्था में रोग अधिक भीषण रूप से प्रकोप नहीं करता, बुढ़ापे में वही रोग शरीर पर बहुत जल्दी आक्रमण करता है और रोग की तीव्रता और प्रभाव भी कहीं अधिक हाता हा यह सब शरार का सुरक्षा-व्यवस्था और शरीर तंत्र के कमजोर पड़ जाने के कारण ही होता है। वृद्धावस्था में स्वास्थ्य-रक्षा के विभिन्न कारगर उपाय :- अपनी दिनचर्या नियमित न करें और कोई ऐसा कार्य न करें जिससे शरीर की क्षमता पर बुरा प्रभाव पड़े। जो काम अपने शरीर को बिना थकाये कर सकते हैं, वही करें। भोजन के बाद (दोपहर के समय) सोएं नहीं, अपितु थोड़ी देर घर में ही इधर-उधर टहलें। आप चाहें तो इसके बाद कछ देर केवल लेट सकते हैं पांत मोना ठीक नटीरात के भोजन के बाद यदि शरीर में सामर्थ्य  हो तो टहलने जाएं। रात की सैर तेज़ नहीं होनी चाहिए, चहलकदमी (आराम से चलना) हो। न सबह ताजा हवा का आनंद लेते हुए घूमने जाएं। सुबह की सैर तेज कदमों से करें, ताकि पसीना आ जाए। ऐसा उपचार करने से आपका शरीर तरोताजा, हल्का, ऊर्जा से युक्त और करने चुस्त-दुरूस्त हो जाएगा। शरीर में थकान और आक्रमण सुस्ता नहा रहगा। जो भी शारीरिक श्रम करें उसमें अपने शरीर प्रति का क्षमता का ध्यान म रख। अपना सामथ्य आर क्षमता से बढ़कर कार्य करने से लाभ के स्थान पर हानि ही होगी। इस बात को कभी न भूलें कि आप अब पहले जैसे युवक नहीं और न ही आपके शरीर में अब पहले जैसी ऊर्जा या शक्ति है। सच्चाई को नज़रों से ओझल करना अपने-आपको धोखा देना है। भोजन में तले, खट्टे-मीठे, चटपटे, मादक पदार्थों और देरी से पचने वाले, बाज़ार में बिकने वाले खाद्य-पदार्थ का सेवन करने से बचें। भोजन रोग की स्थिति और अवस्था के अनुसार ही लें। भोजन में ताजा, पत्तेदार-रेशायुक्त हरी सब्जी, दूध, दही, पनीर, मौसमी फल और फलों तथा सब्जियों के रसों का उपयोग करें। वाला और हल्का होना चाहिए। घी, तेल आदि चिकनाईयुक्त पदार्थों का सेवन या तो बिल्कुल ही न करें या बहुत ही कम मात्रा में करें सुबह का नाश्ता, दोपहर का भोजन, शाम का नाश्ता, रात के भोजन में कम-से-कम चार घंटे का अंतर दें। इस बीच कुछ न खाएं, तो बेहतर रहेगा।  गर्मी में अपने शरीर को सूर्य के ताप, गरम, लू से बचाएं। बाहर तेज़ गर्मी में जाने से शरीर में से नमक, जल और अन्य पदार्थ पसीने द्वारा शरीर से बाहर निकल जाते हैं। जब भी गर्मी में जाना पड़े, चलने से पहले एक-दो गिलास पानी अवश्य पी लें, ताकि शरीर का तापमान गर्मी कीतीव्रता का मुकाबला कर सके। याद रखें जब आपके शरीर में पानी उचित और पर्याप्त मात्रा में रहेगा, गर्मी का प्रभाव शरीर पर पड़ने की संभावना प्रायः कम हो जाती है। गर्मी में बाहर से आकर हठात ठंडा जल या अन्य पेय पदार्थ कभी न पियें। यदि जरूरी हो तो केवल कुल्ला कर लें। बाद में 15-20 मिनट के बाद ठंडा पानी या पेय पदार्थ ले लें। इस बात का ध्यान रखें कि शरीर में नमक और जल का संतुलित अनुपात बना रहे। ऐसा खाद्य पदार्थ जिससे कब्ज़ हो या दस्त व पेचिश की शिकायत होने की संभावना या आशंका हो, मत प्रयोग करें। गर्मी में जितना ठोस पदार्थ खाएंगे आप उतना स्वस्थ रहेंगे। जिन फलों में जल की मात्रा अधिक हो, उनका प्रयोग अवश्य करें, परंतु सीमा के भीतर ही करें। जिह्वा के स्वाद के वशीभूत होकर किसी धोखा खाद्य पदार्थ का अधिक सेवन न करें। ध्यान रखें कम खाने से उतने लोग नहीं मरते या बीमार पड़ते, जितना कि अधिक खाने से रोगग्रस्त होते हैं और मरते हैं। पति ने जिस वनस्पति को एक विशेष प्रत में पैदा किया है. उसी ऋत में उसका प्रयोग करें। किया है उसी जन में उसका पयोग करें। प्रकतिपरक बनें, प्रकृति विरोधी नहीं। प्रकृति की तलना में हम बहुत ही बौने, तुच्छ और फलों अकिंचन हैं. प्रकति बहत दयाल और विशाल और विशाल हृदय है। वाला गर्मी में आप कपडे सदा सती पहनें। गमा में कभी भी नंगे पांव धरती पर पांव न रखें। नंगे पांव घूमने से गर्मी शरीर में प्रवेश कर जाती है। इसी प्रकार सिर को ढक कर रखें। वैसे कहावत भी है कि धप में बाल सफेद होते हैं। धूप में चलने से बचें। सर्दी में ठंडी हवा चलने से जुकाम, खांसी, श्वास-रोग, ज्वर आदि लक्षण पैदा होने का डर रहता है। अतः अपने शरीर को गरम कपडों से , ढकें जरूर और बाहर जाने से पहले अपने शरीर पर ऊनी-गरम वस्त्र पहनें। नहाने के बारे में हठधर्मी न करें। यदि मन करे तभी स्नान करें, अन्यथा हाथ-मुंह धोकर गुजारा कर लें। सुबह उठकर, शौच आदि से निवृत्त होने के ' बाद गुनगुने पानी में एक-दो चम्मच शहद और ९ नींबू का रस मिलाकर पीयें, ऐसा करने से शरीर ' का सुरक्षा-तंत्र सुदृढ़ बना रहेगा और बुख़ार, ठंड, खांसी, जुकाम आदि रोगों से भी छुटकारा मिलेगा। यदि चमड़ी खुश्क हो गई हो तो, नाभि में को रोजाना सरसों का तेल लगाएं और ओठों पर देसी घी लगाएं। नहाने से पहले शरीर पर सरसों के तेल की " मालिश करें। बाद में धूप-स्नान एक-दो घंटे करने के बाद स्नान करें। नहाते समय गुनगुने पानी का प्रयोग करें तो बेहतर रहेगा। वैसे वही पानी उत्तम माना गया है जिसका तापमान कएं या हैंडपम्प से निकलने वाले जल के समान हो। अधिक गरम पानी से नहाने के बाद और एकदम आहार-विहार स्नानघर से बाहर आ जाने के समय ठंड लग जाती है। ठंडे या गुनगुने जल से स्नान किया जाए तो रक्त का दौरा बढ़ेगा। भले ही पहले ठंड लगे, परंतु बाद में शरीर में गर्मी पैदा होने से सर्दी कम लगेगी और अंगों में तनाव भरी नहीं होगा। जाड़े में जो भी खाएं जितना भी खाएं, पच जाता है। जितना भी कपड़ा पहन लें शरीर को सुहाता है। अतः दूध, मक्खन, घी, बादाम, अख़राट, काजू, पिलगा अखरोट, काजू, चिलगोजा, मूंगफली आदि सूखे कास्ता बना रहता है। फलों का प्रयोग करने से शरीर में यथेष्ट उष्मा , भाज भोजन हमेशा जल्दी पचने वाला लें।  रात को सोने से पहले दूध में छुहारा या खजूर डाल कर खाने से या किशमिश-मुनक्का उबाल कर दूध में लेने से शरीर की ताकत बनी रहेगी दस्त स दस्त साफ होगा, शरीर को सर्दी कम लगेगी और रक्त का शोधन और परिवर्द्धन होगा। याद गरमा म स्वास्थ्य यदि गरमी में स्वास्थ्य गिरता है तो जाड़े में स्वास्थ्य सुधारता भी है, शरीर प्रफुल्लित होता है और थकान भी कम होती है। अतः स्वास्थ्य को सुधारने के लिए इस मौसम का भरपूर लाभ उठाएं। मासमा फलो का प्रयोग करें। लाचारी में फलों का रस प्रयोग करें। सर्दी के मौसम में पांव और सिर को ढककर रखने से कई रोगों के प्रकोप से बचा जा सकता है, परंतु मोजे सूती ही पहनें या फिर ऊन के बने समय का पालन करें। प्रत्येक काम (विशेष अवस्था को छोड़कर) को नियत समय पर करें। ऐसा करने से आपको और परिवार के लोगों को भी इस बात का ज्ञान रहेगा कि आपको कब और , क्या चाहिए। खाली समय का सदुपयोग करें और टी.वी., रेडियो, समाचार-पत्र, पुस्तकें आदि पढ़ने में अपना समय बिताए। यदि संभव हो तो अपने परिवार के कामों में सहयोग दें। इससे आपको और आपके परिवार स वालों को भी प्रसन्नता होगी कि आप उनके लिए ७ उपयोगी काम कर रहे हैं। जहां तक संभव हो किसी लाइब्रेरी या वाचनालय या किसी सामाजिक या शैक्षणिक संस्था में अपना योगदान देकर समय का सदुपयोग करें। बुढ़ापे में समय काटना सबसे बड़ी समस्या होती है। खाली बैठना और सोचते रहना मानसिक और शारीरिक रोगों को न्यौता देना है।तनाव, क्रोध, चिड़चिड़ाहट आदि का मुख्य कारण समय का धीरे-धीरे व्यतीत होना है। जो लोग व्यस्त रहते हैं उन्हें कम समस्याएं परेशान करती हैं। यदि कोई रोग पुराना है और उसकी दवाई रोजाना लेते हैं तो यह क्रम बिना विलम्ब के जारी रखें। अपनी दवाएं उचित मात्रा और नियत समय पर लेते रहें। कोई नई समस्या हो तो उसका तुरंत इलाज़ कराएं। बढापे में बेचारगी और हताशा बहत परेशान है और न जग-जग-सी बात पर रटिान पैटा माना है। जहां तक संभव हो अपना कार्य स्वयं करें दसरों पर कम-से-कम निर्भर रहें। अपने शरीर को चलाते रहेंगे तो सुखी रहेंगे, अन्यथा एक ऐसी स्थिति भी आती है जब आदमी अपने-आपको बोझ समझकर जीवन को धिक्कारने लग जाता है, अकर्मण्यता उनके रोगों की जड़ है समय-समय पर अपने पूरे शरीर की जांच करवाएं ताकि पता लगे कि जो रोग है उनकी स्थिति क्या है और क्या किसी अन्य नए रोग की । का आशंका तो नहीं है- वृद्धावस्था के साथ समझौता करना सीखें, इसे कोसें नहीं, इससे भयभीत न हों, बल्कि ईश्वर का धन्यवाद करें कि उसने आपको लम्बी आयु दा है। भाज भोजन में उचित परिवर्तन अत्यावश्यक :- दूध, दही, खमीरी रोटी, छाछ, घी, अदरक, लहसुन, रायता, जैली (एक अंग्रेजी रसायन), सेबों की शराब, सोयाबीन, आंवला, आलिव ऑयल (जैतून का तेल), जौ का पानी, कच्ची-हरी सब्जियों का भरपूर प्रयोग करें। नमक का कम प्रयोग करें। चीनी की मात्रा धीरे-धीरे कम करते जाएं और वसा का जहां तक संभव हो प्रयोग एकदम कम करें। विटामिन बी-समूह, सी और ई के साथ मिन बा-समूह, सा आर इक साथ आहार-विहार रोगों कैल्शियम नियमित रूप से प्रयोग करते रहें। प्याज अदरक और लहसून का प्रयोग जांच वृद्धावस्था में रसायन के समान है। उनकी की ना का चम्मच) लेने से युवकों के समान स्फूर्ति, बल और शक्ति-संचार होता है। खमीर का , आटा और इससे बनी रोटी सेहत के लिए अमृत बल्कि समान है। रात को त्रिफला दध के साथ लेने लम्बी से पाचन, रक्त, आंखों की नजर में सुधार होता है। केवल आंवला ही अनेक रोगों की दवा है और यहि विफला लिया जाए तो असीमित लाभ , होता है। वृद्धावस्था में दांत कमजोर होकर ), गिरने लग जाते हैं और अंततः सभी दांत साथ आलिव छोड देते हैं अतः केवल वही भोज्य-पदार्थों का पानी, सेवन करें जो आसानी से चबाए जा सकें. मुलायम और नरम हों, पौष्टिक हो। मात्रा - इस बात का ध्यान अवश्य रखें कि जो भी जहां  भोजन लें उससे आपके शरीर को सभी पोषक तत्व की प्राप्ति होती हो।