गर्मियों में होने वाले रोगों से कैसे बचें


रोगों से कैसे बचें लू ज्यादा मानव शरीर वातावरण में उतार-चढाव के लगती है। बावजद अपने तापमान को स्थिर रखता है। गर्म और सखे वातावरण में ज्यादा निकलता प्रकृति ने जहां अलग-अलग तापमान वाले पसीना :- गर्म और सूखे वातावरण में पसीना सूख वातावरण म पसाना मौसम बनाये हैं वहीं मनुष्य को तापमान के इस ज्यादा निकलता है। पसीने के सूखने से गर्मी उतार-चढ़ाव को सहन करने की शक्ति भी बाहर निकलती है और राहत मिलती है। मगर प्रदान की है। एक सीमा तक मानव शरीर अपने जब वातावरण गर्म और नम हो तब पसीना तो . आपको इन तापमान के परिवर्तनों के अनुसार आता है, मगर वह सूख नहीं पाता है और ' ढाल सकता है। फिर भी कम तापमान तो सहन तापमान कम नहीं होता इसलिए यह पसीना व्यर्थ हो जाता है, मगर बहुत तेज गर्मी सहन नहीं जाता है। ऐसे में ज्यादा पानी निकलने से शरीर में बोली नदी नाला बोटानी हो पातीपानी की कमी हो सकती है और उसका संतुलन गर्मी के मौसम में ज्यादा होती बीमारियां :- बिगड़ सकता है। इसके अलावा, अगर ऐसे समय त और नाजक में दूसरे कारणों से शरीर में पानी की कमी हो तापमान नियंत्रण शक्ति है। हमारे जैसे गर्म देश में जाए जैसे दस्त लगना, पेचिश या उल्टी होना गर्मी के मौसम में ही बीमारियां ज्यादा होती हैं तब भी शरीर में पानी का संतुलन बिगड़ सकता और कुछ तो केवल इस उष्णता के कारण ही है। इसे डीहाइड्रेशन कहते हैं। जब कभी दस्त पैदा होती हैं। लगते हैं या उल्टियां होती हैं, तो शरीर में नमक शरीर की आंतरिक क्रिया से पैदा होने वाली और सी और पानी की कमी हो जाती है और ऐसे में लू उष्णता का 15 प्रतिशत हिस्सा शरीर के काम में के लक्षण भी जल्दी प्रगट होते हैं। आता है और बाकी 85 प्रतिशत सिर्फ तापमान ज्यादा खुजलाने से हो सकता संक्रमण :बढ़ाने में खर्च होता है। जब शारीरिक श्रम किया गर्मी के दिनों में जब तेज धूप पड़ती है, तब जाता है, तो यह उष्णता और भी बढ़ जाती है आपने अक्सर देखा होगा कि शरीर पर, खासतौर और बढे हए तापमान को कम करने के लिए से उन भागों पर जो कि खुले हुए होते हैं, पसीना आता है। हमारे देश में एक सक्षम व्यक्ति छोटे-छोटे दाने निकल आते हैं. जिनको आराम के वक्त 85 वॉट के बल्व की गर्मी पैदा लोग घमौरी, अम्हौरी आदि नामों से करता है जो कि 70 किलो कैलोरी होती है। यह जानते हैं। इनमें खुजली और जलन मात्र शारीरिक श्रम करने वालों में बढ़कर 400 से होती है। जिन लोगों को पसीना 525 कैलोरी प्रति घंटा हो जाती है। जब यह ज्यादा आता है, यहां तकलीफ भी उष्णता ठीक से संचालित न की जा सके और ज्यादा होती है। ज्यादा खजलाने से शरीर की तापमान नियंत्रण शक्ति जवाब दे जाए इनमें संक्रमण हो सकता है और तो ऐसे में उत्पन्न होने वाली व्याधि को लू लगना फिर ये फोड़े-फुसी का रूप धारण कर लेते हैं। कहते हैं। बहत से लोग सोचते हैं कि गर्मी के मौसम में दुनिया में जहां ज्यादा गर्मी पडती है और ल भी आम खाने से शरीर में गर्मी बढ़ जाती है और आर चलती है वहां इस व्याधि का प्रकोप अधिक है। इससे घमौरी ज्यादा होती है। बहत लोग यह भी सोचते हैं कि यह तकलीफ दवाई की गर्मी से अरब देश, कुछ अफ्रीकी देश, दक्षिण अमरीका ज्यादा होती है, पर ये सब भ्रांतियां हैं। दरअसल, व हमारे देश में राजस्थान, पंजाब के कुछ भाग,  यह सब गर्मी की देन हैं। इस मौसम में बिहार और उत्तर प्रदेश के कुछ भागों में लू लगने फोडे-फंसी ज्यादा होते हैं, क्योंकि पसीना ज्यादा की संभावना काफी होती है। मई-जून के महीनों आने के कारण चमडी पर स्थित कीटाण ज्यादा में गर्मी और सूखे वातावरण में जबकि तापमान परेशानी पैदा कर सकते हैं। के दिनों में धूल-मिट्टी बहुत उड़ती है और जिन सपानी बहता है और नाक बंद हो जाती हैघरेलू नुस्खे (आपकी रसोई-आपका दवाखाना) गर्मी में एलर्जी के कारण आती छींक :- गर्मी के दिनों में धूल-मिट्टी बहुत उड़ती है और जिन लोगों को इनसे एलर्जी हो, उनमें तकलीफ बढ़ जाती है। एलर्जी के कारण छींक आती है। नाक से पानी बहता है और नाक बंद हो जाती है। आंखों में भी खुजली होती है और पानी आता है। ज्यादा गर्मी से बचने के लिए अक्सर लोग वातानुकूलित जगहों में रहना पसंद करते हैं और निकलता जाटों से तेज शप में जाटा पसीना के पसाना आते हैं. तो तापमान के अचानक बदलने से कुछ गर्मी लोगों को एलर्जी की शिकायत हो जाती है जिसे मगर वे सर्दी-जुकाम की संज्ञा देते हैं। आपने देखा तो और होगा कि वातानुकूलित सिनेमा में जाकर और व्यर्थ , वहां से तेज धूप में दोपहर का शो देखकर बाहर में बोटानी निकलने पर बहुत से लोगों को ऐसी शिकायत संतुलन होता समय यह है महज गलतफहमी :- बहुत से व्यक्ति हो इस मौसम में ऑपरेशन कराना ठीक नहीं होना सकता दस्त नमक लू : तब खासतौर समझते। ऐसा समझा जाता है कि पसीना ज्यादा होने की वजह से घाव ठीक से नहीं भरता और में मवाद फैलने की आशंका ज्यादा होती है। मैं और आर समझती हूं कि यह महज गलतफहमी है फिर भी लोग सर्दियों में ऑपरेशन कराना ज्यादा उचित से दरअसल, समझत हमें गर्मी में नहीं करना चाहिए ज्यादा श्रम वैसे ज्यादा दूसरी बीमारियां, जिनका मौसम से संबंध नहीं है, ज्यादा गर्मी में भी हो सकती हैं। गर्मी के बाद बारिश का मौसम शुरू होता है और मौसम बदलने से हैजा, ना होते हैं, उन्हें रान स्वयं रहता है और पेचिश, आंव, दस्त आदि बीमारियां अक्सर लोगों शक्ति कम होती है, बहुत ध्यान से और तुरंत को परेशान करती हैं। इनके अलावा उपचार करना चाहिए। अस्पताल में उनका इलाज सर्दी-जुकाम, ल, निमोनिया आदि भी इसी वक्त होना चाहिए और उनके शरीर में उचित मात्रा में ज्यादा होते हैं। पीलिया, मलेरिया, जोड़ों में दर्द दवाई पहुंचनी चाहिए जिससे कमी परी की जा और चमड़ी की कुछ शिकायतें इसी दौरान बढ़ सके। यह द्रव सूई द्वारा शिरा में दिया जा सकता जाती हैं। हैजा, दस्त, पेचिश आदि की शिकायत है। साथ ही इस बात का भी ध्यान रखना पडेगा गंदगी से फैलती है। ऐसे समय खनिज ज्यादा कि शरीर से अधिक पानी न निकले। उल्टी निकल जाने के कारण शरीर का संतुलन बिगड दस्त, हैजा अगर हो तो उन्हें रोकने के उपाय जाता है और डीहाइड्रेशन हो जाता है। करने चाहिए। जिन लोगों को धूल, मिट्टी आदि से एलर्जी हो उन्हें दोपहर के वक्त धूप में बाहर गर्मी में ढीले, सफेद और ऐसे कपड़े पहनने नहीं निकलना चाहिए और अचानक ठंडी से गर्म चाहिए जिससे हवा का आवागमन ठीक रह जगह और गर्म से ठंडी जगह नहीं जाना चाहिए। तंग और ऐसे कपड़े जिनमें हवा नहीं आ सकते अपनी लर्जी कोमा में सकती है, इस मौसम के लिए उपयुक्त नहीं है। उन्हें गर्मी में ज्यादा श्रम नहीं करना चाहिए। अगर आवश्यक हो तो श्रम के साथ-साथ बीच-बीच जिन लोगों को घमौरियां और फोडे-फंसी में छाया में आराम कर लेना चाहिए। इनसे शरीर ज्यादा  होते हैं, उन्हें गर्मी से बचने के लिए दिन में में तापमान का संतुलन बना रहता है और शरीर ६ दो या तीन बार ठंडे पानी से स्नान करना चाहिए को आराम के दौरान स्वयं को व्यवस्थित करने आ और किसी भी अच्छे कीटाणुनाशक पाउडर को का मौका मिल जाता है। एहतियात के तौर पर बदन पर छिड़कना चाहिए। धूप में निकलें तो गर्म प्रदेशों में काम करने बदन जितना ठंडा रहे उतना ही अच्छा वाले लोगों को रहता है। ढीले, शीतलता बहुत पानी प्रदान करने वाले सूती पी त कपड़े उपयुक्त रहना रहते हैं। चाहिए बदलते हुए । तपते मौसम में सूर्य में सावधानियां ज्यादा रखनी चाहिए :श्रम करने मैं नहीं समझती कि वालों को एक घंटे यहां मौसम बदलने वाली में करीब एक लीटर तक बीमारियों के बारे में या इनसे बचने के पानी पीना चाहिए। चूंकि पसीने में नमक भी बारे में चर्चा की जाए, फिर भी बदलते हुए निकलता है, तो ऐसा समझा जाता है कि पानी के मौसम में सावधानियां रखनी चाहिए, सफाई साथ नमक भी लेना चाहिए, परंतु हमारे देश में रखनी चाहिए और गंदगी से बचना चाहिए। पानी वैसे ही ज्यादा नमक खाने की आदत है, इसलिए को उबाल कर पीया जाए तो आंतों की बहुत अगर खाली ठंडा पानी ही पीया जाये, तो ठीक सारी तकलीफों से बचा जा सकता है। रहता है। सर्दी-जुकाम और फेफड़े की दूसरी तकलीफों से बच्चों और वनों में गर्मी सहन करने की बचने के लिए धूल-मिट्टी से बचना चाहिए। शाक्त होती कम :- कभी-कभी जब सारी धूम्रपान नहीं करना चाहिए और सर्दी-जकाम |सावधानियों के बावजूद लू लग ही जाये तो रोगी होते ही तुरंत इलाज कराना चाहिए। को फौरन किसी ठंडी जगह ले जाना चाहिए। तंग गर्मी का मौसम सुनहरा मौसम होता है। इसमें कपडे उतार कर उसके शरीर को ठंडा करने की लोग स्वच्छंदता से विचरण कर सकते हैं। बाहर किया दूसरी तरह जैसे भी हो उसके तापमान को कम सकते हैं। जहां एक ओर यह मौसम लोगों को करने की कोशिश करनी चाहिए। जरूरत पड़ने CM स्वतंत्रता प्रदान करता है, वहीं यह अपने साथ पर बर्फ की सिल्ली पर भी व्यक्ति को लिटाया स्वतंत्रता प्रदान करता ह, व जा सकता है। ऐसे व्यक्ति को जल्दी अस्पताल कुछ तकलीफ भी लाता है। यह तकलीफ ऐसी ले जाना चाहिए, जहां उसको उपयक्त उपचार है जिससे अगर थोडी सावधानी रखी जाए तो आपात स्थिति पैदा कर देती है। खासतौर से परा आनंद उठा सकते हैं। बच्चों और वृद्धों में, जिनमें इसे सहन करने से, बर्फ से और घूम सकते हैं।