वैद्य मुरलीधर उपाध्याय


 मनुष्य शरीर में श्वास का महत्वपूर्ण स्थान है। भगवान ने मनुष्य शरीर में इस तरह व्यवस्था की है कि श्वसन की नियमित क्रिया जारी रहती है। नियमित रूप से होने वाली श्वसन क्रिया ने व्यक्ति यदि कोई कठिनाई महसूस करता है तो उसे श्वास रोग या अस्थमा कहा जाता है। अस्थमा से ग्रस्त रोगी में फेफड़ों को पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन नहीं मिलने की वजह से साँस लेने में तकलीफ होती है। समस्त विश्व में कष्टदायक रोगों में दमा की गणना होती है। इसे महादु:खदायी रोग कहा गया है, जो बड़ी मुश्किल से ठीक होता है। इसलिए दमा रोग दम के साथ ही जाता है, यह कहावत प्रचलित है। कारणः अस्थमा मुख्यतः श्वसन संस्थान से सम्बन्धित रोग है। श्वास नलिका में सिकुड़न, ऐंठन, क्षोम, श्लेष्मकला में सूजन व उनमें कफ भर जाने से अस्थमा का रोग होता है। रोग जिसके आयुर्वेदानुसार जिसके आयुर्वेदानुसार इसे श्वासरोग कहा गया है, जिसके मुख्यत: पांच प्रकार बताए गए हैं। महाश्वास, ऊर्ध्वश्वास, छिन्नश्वास, तमकश्वास, और क्षुद्रश्वास। इसके निम्न कारण हैं- आनुवांशिक, आहार जन्य दमा, विहार जन्य दमा, वात कफ के कारण बताए गए हैं। दमा फेफड़े, हृदय, गुर्द, आंत व स्नायु दुर्बलता व नाक के रोग के फलस्वरूप भी हो सकता है। खून की कमी, एवं कमजोरी से भी अस्थमा हो सकता है। साइनोसाइटिस इओसिनोफिलिया, सतत् खांसी सर्दी का पूरी तरह से इलाज नहीं करने पर भी अस्थमा होता है। संक्षेप में अस्थमा के मुख्यत तीन कारण है।


1. एलर्जी, 2. संक्रमण, 3. मानसिक विक्षोम। लक्षण :- अस्थमा में श्वसन नली में सूजन आने की वजह से सिकुड़न से सांस लेने में कष्ट, साँस लेते समय सीटी बजने जैसी घुर्र–घुर्र जैसी आवाज, दम घुटना, पेट फूलना, हमेशा हल्का बुखार महसूस करना आदि लक्षण होते है। खांसी का दौर जारी रहता है। आँखें फैली व डरावनी लगती है, रोगी को नींद नहीं आती तथा बेचैनी महसूस होती है। अस्थमा के वेग के समय छाती में भारीपन, दर्द व कमजोरी रहती है। अतः यह कष्ट साध्य व्याधि है। दमा के रोगी का सामान्य स्वास्थ्य भी प्रायः अच्छा नहीं रहता है। पीड़ित व्यक्ति में तनाव, थकावट, अत्यधिक पसीना आना, खून की कमी, वजन कम होते जाना, रक्तचाप कम रहना, भूख कम लगना, कब्ज रहना आदि ५ लक्षण मिलते हैं। निदान :- अस्थमा के रोग का निदान कोई जटिल काम नहीं है। इसे लक्षणों के द्वारा बहुत आसानी से पहचाना जा सकता है। रोग की पुष्टि के लिए निम्न बातों की सहायता ली जा सकती है। जैसे एलर्जी परिवार में दमे का पूर्व इतिहास मिलने पर, प्रयोगशाला परीक्षण द्वारा बलगम, खून की विभिन्न जांचों द्वारा, एक्सरे एवं पल्मोनरी फंक्शन टेस्ट की सहायता ली जा सकती है। स्टेथोस्कोप के द्वारा फेफड़ों में विशेष ध्वनि घरघराहट के जरिए अस्थमा का। निदान करते हैं। " आयर्वेदानसार दमा रोग की चिकित्सा केवल औषधियों के सेवन से ही संभव नहीं है। इसके साथ-साथ रोगी को अपने रहन-सहन तथा आहार-विहार में भी सावधानी रखना जरूरी है। सबसे पहले तो यह निश्चित करें कि अस्थमा का कारण क्या है? यदि एलर्जिक अस्थमा है तो किस वस्तु से एलर्जी है, यह मालूम कर उससे बचने का प्रयास करें। । आयर्वेदिक उपचार में उचित आहार-विहार, नींद आयर्वेदिक औषधियों, योस एवं प्राकृतिक । चिकित्सा व पंचकर्म द्वारा इसे नियंत्रण में रखा दर्द जा सकता है। इसके उपचार के लिए औषधियों साध्य की जरूरत पड़ती है, जो श्वसन नलिकाओं स्वास्थ्य की सजन को कम करें उन्हें फैलाव संक्रमण व्यक्ति नहीं होने दें इसका उपचार वेगळालीन और , वेग के पश्चात मख्यतः दो प्रकार से किया  जाता है। 



सरल सुलभ घरेलू उपचार :- 1. हल्दी -  दमा का कफ गिरने पर प्रतिदिन तीन बार 5 ग्राम हल्दी की फकी गरम पानी से लें। एलर्जिक प्रवास रोगों में हल्दी बहुत लाभदायक है हल्दी को जाल में सेंककर पीसकर एक जायजयची में दो बार पानी में दें। हल्दी हर प्रकार के प्रवास रोगों में लाभदायक है। हल्दी और सौंठ का च शहद के साथ लेने से श्वास मिटता है। । -


2. तुलसी :- तुलसी का रस, शहद, अदरक का रस, प्याज का रस मिलाकर देने से लाभ होता है। बच्चों के श्वास रोग में तुलसी के पत्तों का रस और शहद मिलकर दें।


3. लहसुन :- लहसुन के रस को गरम पानी के साथ देने से श्वास, दमा में लाभ होता है। एक कप गरम पानी में दस बूंद लहसुन का रस, दो चम्मच शहद् प्रतिदिन प्रातः दमा के रोगी को पीना लाभदायक है। यह दमा के अलावा हाईकोलेस्ट्रॉल, जोड़ों के दर्द आदि में भी लाभ देगा।


4. अदरक :- अदरक की एक कप चाय कफ को निकालने में बहुत मदद करती है, जिसकी वजह से साँस लेना व छोड़ना आसान होता है। थोड़ी सी अदरक पानी में उबल लें एवं इसमें थोड़ा शहद मिला लें। अदरक की इस चाय को दिन में 2-3 बार भी पी सकते हैं। ।


5. फिटकरी :- फूली हुई फिटकरी और मिश्री को समान भाग लेकर दिन में चार बार । आधा-तोला की मात्रा में लेने से दमा में लाभ मिलता है।



अनुभूत आयुर्वेदिक चिकित्सा :- 1. (अ) वृहत् श्वास कास चिन्तामणि रस की एक गोली सुबह-शाम खाली पेट अदरक के रस के साथ दें।। (आ) चौसठप्रहर पिप्पली 10 ग्राम, भृगश्रृंगभस्म 5 ग्राम, शुद्धटंकण भस्म 10 ग्राम, श्वास कुठार रस 10 ग्राम, सितोपलादि चूर्ण 10 ग्राम की 60 पुडिया बनाकर दिन में तीन बार शहद के साथ दें। (इ) कनकासव व पिप्पल्यासव 2-2 चम्मच सुबह-शाम भोजन के बाद गरम पानी मिलाकर दें। 2. (अ) चन्द्रामृत रस 5 ग्राम, मकरध्वज 5 ग्राम, अभ्रक भस्म 10 ग्राम, श्वास कुठार रस 5 ग्राम, प्रवालपिष्टि 10 ग्राम, चौसठप्रहरी पीपल 5 ग्राम, सितोपलादि चूर्ण 20 ग्राम इन सबको एक साथ मिलाकर 40 पुड़ियां बना लें। एक पुड़िया सुबह-शाम शहद के साथ दें। (आ) श्रृंगाराभ्ररस- आरोग्यवर्धनी वटी 2-2 गोली सुबह-शाम सेवन कर।। (इ) कनकासव एव द्राक्षासव चार-चार चम्मच समान मात्रा में पानी मिलाकर भोजन के बाद सुबह-शाम सेवन करें। पेटेण्ट अनुभूत चिकित्सा - (अ) अस्थमा अवलेह (Mdilco) एक-एक चम्मच सुबह-शाम भूखे पेट गरम पानी से दें। (आ) श्वास कल्प (वैद्यनाथक) एक-एक । गोली 10 बजे और 4 बजे दें। (इ) सोमकल्पा (अफांक) 3-3 चम्मच खाने के बाद सुबह-शाम समान मात्रा गरम पानी मिलाकर लें। (ई) कठिल गोली (खुशल का) दिन में 1-1 करके छ: बार लेकर चूसें। ' (उ) च्यवनप्राश रात को सोते समय एक चम्मच गरम दूध के साथ लें। दमा रोगियों को लिए विशेष उपाय, 1. सुबह बिस्तर से उठते ही एक गिलास गरम पानी अवश्य पिएं। 2. दमे से पीड़ित को दो चम्मच गोमूत्र अर्क, 2 चम्मच शहद तथा आधा कटोरी हल्का गरम पानी पीने से बहुत आराम मिलता है। 3. दमे से पीड़ितों को का सेवन करते रहना 3. दमे से पीड़ितों को नियमित रूप से प्याज का सेवन करते रहना चाहिए। प्याज के साथ टमाटर मिलाकर बनाई गई सब्जी विशेष लाभ देती है। 4 दमे से पीड़ितों को अनिवार्य रूप से भोजन के बाद मत्र त्याग अवश्य करना चाहिए। 5. भोजन के बाद आधा घंटे तक पानी नहीं पीना चाहिए। 6. दमे के रोगियों को चाहिए कि सोने से पहले दस मिनट तक अपने पैरों को थोड़ा ऊंचाई पर अवश्य रखें।। 7. एक ही समय डटकर पानी न पिएं। अपित थोड़ा-थोड़ा और रुक-रुककर पानी लाभदायक है। 8. दिन के समय कदापि नहीं सोना चाहिए। यदि सोना ही हो तो बहुत थोड़े समय के लिए। मल-मूत्र के वेग को बिल्कुल न रोक। 9. दोनों समय वायु सेवन के लिए खुली और शुद्ध वायु में अवश्य घूमना चाहिए। 10. अधिक सोना, ठंडी और खट्टी वस्तुओं के सेवन से बचें। सेब, अंगूर, नारंगी, ठंडे पानी का अधिक सेवन, धूप में अधिक चलना-फिरना और गुड़-शक्कर, लाल मिर्च, तेल से बनी हुई वस्तुओं से सख्त परहेज रखें। अधिक परिश्रम करने से बचें।