आयुर्वेद के दिव्य ज्ञान की रचना सृष्टि रचयता श्री ब्रह्म जी ने की। उन्होंने इस अद्भुत ज्ञान को लोक कल्याण हेतु इन्द्र को दिया। महर्षि भारद्वाज ने यह ज्ञान इन्द्र से प्राप्त किया और महर्षि भारद्वाज ने इस ज्ञान को ऋषि-मुनियों में बांट दिया। चरक, सश्रत, आत्रेय आदि ऋषियों ने आयुर्वेद पर विशाल ग्रंथ की रचना की। आयर्वेद दो शब्दों के संयोग से बना है। आय+वेद आय का अर्थ-जन्म से लेकर मृत्यु तक की बीच के अवधि को आयु कहते है। शरीर, इन्द्रिय, मन तथा आत्मा के संयोग को आयु कहते है। वेद का अर्थ :- ज्ञान या जानकारी। एक्यूप्रेशर :- एक्यूप्रेशर दो शब्दों के संयोग से बना है। एक्यू और प्रेशर, एक्यू का अर्थ :- सूई, प्रेशर का अर्थ :- दबाव। सूई के नोक के समान सक्ष्म बिन्द पर दबाव के द्वारा उपचार ही एक्यूप्रेशर कहलाता है। इलाहाबाद के एक्यूप्रेशर शोध, प्रशिक्षण एवं उपचार संस्थान के वरिष्ठ उपाध्यक्ष आदरणीय श्री जे.पी. अग्रवाल जी गहन चिन्तन, सोच व शोध के कारण 2003 में आयुर्वेदिक एक्यूप्रेशर का उद्गम हुआ और तब से लगातार इसमें नए-नए आयाम शोध के कारण प्रकाश में आ रहे है। स्वास्थ्य क्या है :- शरीर में वात, पित्त और कफ तीनों समान और शान्त अवस्था में रहते हैंतो यह शरीर के बल कहलाते हैं और व्यक्ति स्वस्थ होता है। जब यह किसी भी कारण से विषम या कुपित अवस्था में होते हैं तो यह दोष कहलाते हैं और शरीर में रोग उत्पन्न होते हैं। वात, पित्त और कफ को त्रिदोष कहा जाता है। शरीर को धारण करने वाले तत्व को धातु कहते हैं। धातु के सात रूप होते हैं। 1. रस, 2. रक्त, 3. मांस, 4, मेद, 5. अस्थि, 6. मज्जा, 7. शुक्र। मनुष्य का शरीर एवं यह सम्पूर्ण जगत पांच महाभूतों से मिलकर बना है। यह पांच तत्व हैं :- आकाश, वायु, अग्नि, जल तथा पृथ्वी। ‘क्षित जल पावक गगन समीरा।। पंच रचित यह अघम शरीरा॥' विद्वान लेखकों ने गहन अध्ययन में पाया कि मनुष्य का शरीर एवं यह सम्पूर्ण सृष्टि पाँच तत्वों से नहीं, बल्कि दस द्रव्यों से मिलकर बने हैं। हमारा शरीर पांच भौतिक तथा पांच पराभौतिक द्रव्यों का अद्भुत संगम, का एक विलक्षण उदाहरण है। जिस प्रकार आकाश, वाय, अग्नि, जल तथा पृथ्वी के संयोग से भौतिक जगत का निर्माण होता है उसी प्रकार पांच पराभौतिक तत्वों के संयोग से पराभौतिक जगत का सृजन होता है। इन भौतिक और पराभौतिक सत्ताओं के संयोग के कारण ही यह जडचेतनात्मक जगत है जिसमें सृष्टि की अभिव्यक्तियां अनेक रूपों में दिखलाई पड़ती है। भौतिक स्वरूप :- 1. आकाश, 2. वायु, 3. अग्नि, 4. जल, . पृथ्वी। पराभौतिक स्वरूप :- 6. काल, 7, दिशा, 8. मन, 9, आत्मा, 10. तम।। पंच द्रव्य में हो सन्तुलन, हो काल दिशा सुचारू मन तेरा जब हो प्रसन्न, तुमको मैं स्वस्थ पुकारू पला आत्मा प्रकाश जब पा जाते, तब तम हो जाता दूर, जग में विचरण करते दिखते होते जीवन चक्र से दूर चक्र से दूर एक्यूप्रेशर में रोग निदान एवं उपचार की दृष्टि से । दस द्रव्यों को अंक में दर्शाया है जिसका बहुत महर द्रव्य अंक 1. आकाश 2. वायु 3. अग्नि 4. जल 5. पृथ्वी दस उत्पति चक्र 6. काल । Ten Origin Cycle 7. दिशा 8. मन । 9. आत्मा 9 10. तम 0 आयुर्वेदिक एक्यूप्रेशर में प्रत्येक द्रव्य का सामान्य और वैशेषिक गुण पर गहन चर्चा की जाती है जिससे उपचार में स्पष्टता आती है। आयुर्वेदिक एक्यूप्रेशर में उपचार अंगुली के जोड़ों और कलाई पर, पैर की अंगुली व टखनों पर होता है। आयुर्वेदिक एक्यूप्रेशर में शरीर के अवयवों के छोटे-से-छोटे हिस्से का भी उपचार सम्भव है। आयुर्वेदिक एक्यूप्रेशर द्वारा उपचार करना बहुत आसान है क्योंकि दस द्रव्यों के सिद्धान्त को समझकर अपने विवेकानुसार इलाज करना होता है। उदाहरण :- रोगी को दस्त लगे हैं। यानि जल की। मात्रा बढ़ गई है और पृथ्वी कम हो गई है साथ ही काल (समय) कम हो । उपचार :- बड़ी आँत (LI) के जोड़ पर (दहिने हाथ के छोटी अंगुली के ऊपर का जोड़)4 (जल कम करे) 5,6(पृथ्वी और काल बढ़ाये)। आयुवेदिके एक्यूप्रेशर के उपचार पद्धति द्वारा । Brain के बारीक हिस्से, हृदय के, लीवर के, , किडनी के या अन्य अवयव के असाध्य रोगों का उपचार सम्भव हो सका है। इस प्रकार आप भी . उपचार कर सकते हैं लेकिन उपचार पूरे अवयव पर होगा। अभी आप उचपार के लिए मैथी की बहुत पट्टी बनाकर लगा सकते हैं। इस आयुर्वेदिक एक्यूप्रेशर को सीखना बहुत आसान है और कोई भी सीख सकता है। इसको सीखकर अपने देश, समाज, मोहल्ला और स्वयं को रोगमुक्त कर सकते हैं और बेहतरीन आजीविका का साधन बना सकते हैं। इस अद्भुत और अनोखी, कम खर्च वाली, बेमिसाल आयुर्वेदिक एक्यूप्रेशर द्वारा रोग निदान, उपचार या सीखने (Certificate, Diploma Course) के लिए मुझसे बात कर सकते हैं।
आयुर्वेदिक एक्यूप्रेशर एक परिचय