मानव शरीर पाँच प्राकृतिक तत्वों से निर्मित होवा को शुद्ध सात्विक आहार से भरें, एक भाग जल है। यथा- पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु एवं आकाश। से व एक भाग खाली वायु के लिए छोड़ दें। इस का ही एक विचित्र विधान है कि प्रकार का आहार शीघ्र पचन वाला, शक्ति इन इन्हीं पाँच तत्वों से मानव बहुत से रोगों की 'वाला, सप्त धातुओं का पोषण करने वाला, ला प्राकृतिक चिकित्सा कर सकता है। । ।आयु, तेज व बल को बढ़ाने वाला, शारीरिक व " 'प्रकृति ने हमें आठ ऐसे चिकित्सक या ऐसी मानसिक शक्ति को पोषण देने वाला होता है। विस्तुएं प्रदान की हैं जो हर समय हमें सर्व सुलभ 'आहार से ही शरीर में सप्त धातएं बनती हैं। हैं और जिनके सहयोग से तथा उचित सेवन से गिरिष्ठ भोजन हानिप्रद होता है। सच्ची भूख लगने हम यथा सम्भव आरोग्यता प्राप्त कर सकते हैं। पर ही भोजन करना चाहिये। भोजन शान्तिपूर्वक ये हैं 1. वायु 2. आहार 3. उपवास 4. करना चाहिये। कहा भी है कि 'भजन' व |व्यायाम 5. जल 6. सूर्य 7. विचार 8. निद्रा।'' भोजन' एकान्त का ही लाभदायक होता है। यहाँ हम पाठक वर्ग के ज्ञान के लिये संक्षेप में 13 उपवास - उपवास का शारीरिक व इनके विषय में चर्चा करेंगे। । मानसिक स्वास्थ्य दोनों के लिए बहुत ही महत्व 1. वायु :- वायु प्रकृति द्वारा प्रदत्त सर्व सुलभ । न है। यदि हम सप्ताह में एक दिन का उपवास करें एक अमोध चिकित्सक है। वायु हमारे शरीर में 'तो हमारी शरीर के नाड़ी तंत्र को विश्राम मिलेगी, इससे हमारा शारीरिक स्वास्थ्य बढ़ेगा। उपवास |प्राण रूप में स्थित है। प्रात:कालीन ब्रह्मबेला की क के दिन यदि हम अपने विचारों को भी पवित्र वायु का अपना एक अलग ही महत्व है। इसलिए रखेंगे तो हमें मानसिक शान्ति भी प्राप्त होगी। । प्रात:काल ब्रह्मकाल में भ्रमण करना सौ रोगों की आज के परिवेश में तो हम पवाय का आज के परिवेश में तो हम उपवास के दिन और एक रामबाण दवा है। प्रात:काल वायु सेवन करने अधिक मात्रा में गरिष्ठ भोजन का उपभोग करने से देह की धातुएं व उपधातुएं शुद्ध एवं पुष्ट होती लगे हैं जो और अधिक हानिकारक है। उपवास, हैं, समस्त इन्द्रियों को पुष्टि एवं बल मिलता है। यदि हो सके तो निर्जल ना हो तो फलों के जूस' गवं मनष्य बदिवान निरोग एवं बलवान बनता आदि पर ही रह कर करें। अन्न एवं ठोस आहार है। शुद्ध वायु, शुद्ध भूमि, शुद्ध जल, शुद्ध प्रकाश का पूण त्याग करयदि ना कर पायता सप्ताह आदि मनुष्य जीवन के लिये बहुत आवश्यक पायल में एक दिन केवल एक समय थोड़ी मात्रा में पायगय हा शरीर, मन, प्राण, प्रसन्नता ओज' भोजन ग्रहण करें। उपवास करने से मनाया तेज, बल, चिर यौवन एंव निरोगता के लिए शुद्ध । आत्मिक शक्ति भी बढ़ती है। वायु अतिआवश्यक है जो हमें प्रात:भ्रमण से 4, व्यायाम :- जीवन में प्रसन्नता, स्वास्थ्य एवं वा पर्याप्त रूप से प्राप्त हो जाती है। इसीलिए सौन्दर्य के लिए व्यायाम अति आवश्यक है। प्रात:काल का वायु सेवन अमृतपान कहा गया है। 'व्यायाम के अन्तर्गत सूर्योपासना, प्राणायाम एवं |अनेकों योगासन आदि आते हैं। व्यायाम से शरीर 12. आहार :- हमार शारीरिक स्वास्थ्य एव के अंगों का विकास होता है, थकावट दूर होती, भोजन का परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध है। हमारे है एवं नयी स्फर्ति पैदा होती है। जठराग्नि तेज मानसिक स्वास्थ्य एवं भोजन का भी परस्परा होती है व आलस्य मिट जाता है। कार्य करने की घनिष्ठ सम्बन्ध है। कहावत भी है- “जैसा खाये शक्ति बढती है, मोटापा नहीं रहता व शरीर के अन्न, वैसा हो मन''। हमें स्वस्थ रहने के लिए अंग पुष्ट हो जाते हैं। यथोचित व्यायाम से प्रकृति, स्वल्प एवं शद्ध सात्विक भोजन ही ग्रहण करना के विरुद्ध लिया गया गरिष्ठ भोजन भी पच जाता' चाहिये। सात्विक आहार से शरीर की सभी है, तथा शारीरिक शिथिलता दूर होती है। । धातुओं को उचित पोषण प्राप्त होता है। आहार में जल :आहा 15. जल :- स्वास्थ्य की दृष्टि से जल का स्थान स्विल्प भी होना चाहिये- "स्वल्पाहार; हमारे जीवन में बहुत ही महत्वपूर्ण है। सोकर सखावह: थोड़ा आहार स्वास्थ्य के लिये उठते ही यथोचित मात्रा में जल पीना बहुत ही उपयोगी होता है। आहार उतना ही करें जो हितकर कहा गया है। रात में तांबे के बर्तन में सुगमता से पच जाये। कहा गया है कि हमें रखा हुआ जल सुबह सोकर उठते ही पीने की अपनी भूख के चार भाग करने चाहिये। दो भाग आदत बहुत से रोगों को पैदा ही नहीं होने देती। शास्त्रों में लिखा शास्त्रों में लिखा है कि इस प्रकार जल पीने वाला - - मनुष्य रोग एवं वृद्धावस्था से मुक्त होकर सौ वर्ष तक जीवित रहता है। एक व्यक्ति को एक दिन में कम से कम दो से तीन लीटर तक जल अवश्य पीना चाहियेखाने से आधा घंटा पूर्व एक खाने के एक घंटे बाद जल का सेवन 'हितकर होता है। यदि आवश्यक हो तो खाने के बीच में दो तीन घंट जल लिया जा सकता है। 6. सूर्य :- जीवन की रक्षा करने वाली सभी शक्तियों का मूल स्रोत सूर्य को ही बताया गया है। हमारे जीवन में सूर्य किरणों का बहुत महत्व । है। प्रात:कालीन उगते हुए सूर्य को किरणों के सेवन से बहुत-सी बीमारियों से बचाव हो सकता है। इसे सूर्य किरण चिकित्सा के नाम से जाना जाता है। इसके विषय में विस्तृत विवरण पाठक गण ‘‘मेरी तुलसी'' अंक तृतीय वर्षा ऋतु अंक 2017 में देख सकते हैं। सर्य के प्रकाश से रोग प्रतिरोधक शक्ति का विकास होता है। सूर्य का प्रभाव मनुष्य के शरीर व मन पर बहुत गहरा पड़ता है। चिकित्सा जगत का ऐसा विश्वास हैकि सूर्य किरणों के सेवन से प्रत्येक प्रकार के रोगों को शान्त किया जा सकता है। । 7. विचार :- विचार शक्ति में एक महान उद्देश्य छिपा रहता हैहमें अपने विचारों को सदा-सर्वदा शुद्ध एवं पवित्र रखना चाहिएशुद्ध एवं पवित्र विचार एक जीवनी शक्ति के रूप में कार्य करते हैंआरोग्य लाभ के लिए मनुष्य को विचार शक्ति का आश्रय लेना चाहिये। यह दढ़ विचार कि “मैं निरोगता को प्राप्त हो रहा हं''। ।मनुष्य का आरोग्यता की ओर ले जाता है। टीन विचारों से मन भी रूग्ण होकर, शरीर भी रोगी हो जाता है। असल में विचारों का प्रभाव सीधा हमारे स्वास्थ्य पर पड़ता है। 8. निद्रा :- जिस प्रकार स्वास्थ्य रक्षा के लिये स्वच्छ जल, वायु, भोजन आदि की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार स्वास्थ्य के लिए निद्रा भी परम आवश्यक है। प्रगाढ निद्रा से मनुष्य को आलस्य दुर होकर पुष्टि, बल, उत्साह की वृद्धि होती है। रात्रि में सदुविचारों का स्मरण करते हुए शान्ति से सोना चाहिये। शरीर का वस्त्र ढीला होना चाहिए। उत्तम स्वास्थ्य के लिए सात्विक 'निद्रा आवश्यक है। सोने से पहले मन को समस्त चिन्ता, भय आदि से मुक्त करके सोना चाहिए। उपरोक्त आठ प्रकृति द्वारा सुगमता से उपलब्ध वस्तुओं का उपयोग यदि मनुष्य उचित प्रकार से करता रहेगा तो स्वास्थ्य लाभ होगा ही होगा।
सर्व सुलभ आठ प्राकृतिक चिकित्सक