यकृत का बढ़ना

हमारे शरीर में जिगर एक रासायनिक प्रयोगशाला है, जो अनेक महत्वपूर्ण अंगों को सुरक्षित रखने । • का प्रयास करता है। पाचन प्रणाली के माध्यम से से आए नुकसान देह पदार्थ जिगर में ही रोक लिए जाते हैं, जिससे हृदय, फेफडे व मस्तिष्क उनके"बरे प्रभाव से सरक्षित रहते हैं। दाहिने भाग की पिसलियों के नीचे यकत होता है। यकत रोग आरंभ होते ही कम्प देकर ज्वर आता है। बाद में बुखार तो शान्त हो जाता है, लेकिन यकृत की विशेष मी बीमारी बनी रहती है। रोग जब धीरे-धीरे पुराना हो जाता है तब यकृत कठोर एवं पहले से बड़ा हो जाता है। यकृत के स्थान को दबाने से दर्द के शान को दबाने में दर्द करता है। मेहनत से यकृत में दर्द होता है। अपने आप भी बिना श्रम के दर्द होता रहता है। जीभ सफेद, सिर दर्द, कमजोरी, अपच, दाहिने कंधे के पीछे दर्द, ट्टटी आंव युक्त कीचड़ जैसी, मुंह का वेस्वाद लक्षण प्रकट होते हैं। कब्ज और पेट में गैस ज्यादा होना इसके प्रमुख लक्षण है। रोग जब बढ़ता है तो घातक रूप ले लेता है और अंत यकृत का संकोचन होकर रोगी की मृत्यु हो जाती है। अधिक शराब पीना, गर्म जगह रहना, अधिक मिठाई खाना आदि कारणों से यकृत रोग की उत्पत्ति होता है। आठ साल पूर्व प्रायः बहुत से बच्चों का यकृत खराब हो जाता है, जिससे बच्चे पुष्ट नहीं होते बराबर रोगी रक्त हीन दिखते हैं। निम्न यकृत का सूत्रण रोगा (Cirrhosis of the liver):- यकृत कठोर तथा आकार में छोटा हो जाता है। आंतों में से प्रोटीन भोजन से उत्पन्न 'विषों के रक्त में चले जाने से उनके दुष्प्रभाव से मृत्यु हो जाती है, परंतु जब कोई बाहृय या अभ्यंतर थोड़ी-थोड़ी मात्रा में लगातार यकृत में प्रवेश करता रहें तो कुछ एक मृत हुए सैलों के स्थान पर नये सैल अति मात्रा में उत्पन्न हो जाते हैं, और कुछ एक मृत हुए शेलों के स्थान पर नया स्नायुतंतु आ जाता है। इसका परिणाम यह होता है कि यकृत जिगर प्रयोगशाला आकार में बड़ा तथा रखने । कठोर हो जाता है। इसे चिरस्थान वृद्धि कहते हैं। से यह 40-50 वर्ष की आयु में पुरूषों को अधिक से होता है। लिए ' कई बार व्यक्ति कैंसर, हृदय रोग आदि को 'हिी बड़ा रोग मान बैठती है तथा इन्हीं को मृत्यु । रोग का कारण भी। मगर हमारा शरीर विचित्र है। में इसका हर अंग विशेष होता है। इन अंगों में दो विशेष अंग है, जिगर तथा गुदीइनके विशिष्ट विशेष अंग हैं, जिगर तथा गुर्दा। इनके विशिष्ट पुराना कार्य हैइनके स्वस्थ रहने से ही हमारा शरी कार्य हैं। इनके स्वस्थ रहने से ही हमारा शरीर बड़ा पूर्ण स्वस्थ रह सकता हैपूर्ण स्वस्थ रह सकता है। यदि ये अंग ठीक कार्य दर्द नहीं करेंगे तो मृत्यु भी करीब आ सकती है। दर्द नहीं करेंगे तो मृत्यु भी करीब आ सकती है। अपने अत: इनकी पूरी जानकारी रखना आवश्यक है। जीभ अगर जिगर में जाए तो तुरंत सचेत हो कंधे जाएं और उपचार करें। इसके लिए लापरवाही न मुंह करें। जिगर में सूजन के कुछ लक्षण भी हैं। यदि पेट ये सारे लक्षण अथवा इनमें से कुछ सामने आ रोग जाएं तो समझ लें तकलीफ आ खड़ी हुई है। अंत जिगर के कोष धीरे-धीरे निष्क्रिय होने लगते हैं, जाती जिगर सामान्य न रहकर, कुछ कठोर हो जाता है। अधिक जिगर का सिकुड़ना तथा आकार में छोटा होना भी इस रोग की निशानी है। लक्षण आम व्यक्ति से नहीं जान पाता है मगर इससे होने वाले प्रभावों बच्चे को तो वह महसूस कर ही सकता है। ये प्रभाव निम्न है :- |चिड़चिड़ापन उल्टी करने को मन करना है, मगर ठीक से, उल्टी नहीं। उसके शरीर में सुस्ती आने लगती है 'तथा वह हर समय उबाकई सी महसूस करता है। से भूख बहुत कम हो जाती है। कुछ भी खाने को मन नहीं करता। परिणाम स्वरूप शरीर का वजन में भी घटाने लगता है। पेट में मीठा-मीठा दर्द बना रहता है। उसे हल्का बुखार भी घेरे रहता है। जाते त्वचा पर मकड़ी के जाले जैसे निशान उभर आते हैं। नसों का फूल जाना भी इस रोग का प्रभाव है। व्यक्ति थका-थका रहता है तथा मानसिक कार्य करने में कठिनाई अनुभव करता है। ऐसे व्यक्ति का पेट फूला-फूला रहता है, जैसे अन्दर हवा भरी हो। जिगर सुजन होने के भी कई कारण हैं :- जो व्यक्ति शराब पीता हो। किसी प्रकार का संक्रमण हो जाना तथा उसका ठीक समय पर उपचार न कर सकना, कोई भी शारीरिक रोग अधिक समय तक रहे तथा शरीर निरंतर क्षति पहुंचाता रहे, 'जिगर की सूजन का कारण बन सकता है। । भोजन में पौष्टिक तत्वों की कमी पडने तथा शरीर की शक्ति का लगातार हृास होने से रोग हो जाता है। लीवर को हम शरीर की कैमिकल फैक्टरी कह सकते हैं जो 24 घंटे लगातार अपना कार्य करती रहती है। यह शरीर की रचना की महत्वपूर्ण भाग है, जो हमारे पेट की पसलियों के नीचे दाईं ओर डायग्राम के पास स्थित है। लीवर का मुख्य कार्य पित्त को रस से अलग कर यूरिक एसिड के रूप में पेशाब से बाहर निकलना, शरीर की गर्मी प्रदान करना, चिकनाई को पचाना और खून में रेड सेल्स को नियंत्रण करना होता है। लीवर खराब होने पर कई प्रकार के रोग हो जाता है। जैसे रक्ताल्पता, पीलिया और लीवर का बढ़ जाना इलाज नहीं करने पर लीवर कार्य करना बंद कर देता है, जिससे कैंसर तक होने का खतरा बढ़ जाता है। लीवर की गड़बड़ी से पेशाब का रंग पीला होता है। बदन में खुजली का होना, जीभ पर मैल जमना और बाल गिरना आदि लक्षण दिखाई देता है। स्वभाव में चिड़चिड़ापन होना, सुस्त रहना आदि हो जाता हैउपचार के तौर पर रोटी बिना घी वाले लें. पराठा, पूड़ी बिल्कुल न खाएं सब्जियां उबली हुई या नानस्टिक बर्तनों में बनी खायें। ताजे गन्ने व ताजी गाजर का रस लाभप्रद होता है। आंवला कच्चा आंवले का रस शहद मिलाकर लेना भी फायदेमंद है। साग विशेषकर बथुआ, चौलाई रक्त बढ़ाने में मदद करता हैअनार का रस, संतरा आदि भी ले सकते हैं। आधा छोटा गिलास पालक के रस में इससे दुगना गाजर का रस मिलाकर इसमें स्वाद के अनुसार थोड़ी पीसी काली मिर्च, नमक तथा नींबू का रस डालकर पीने दें। बहुत अच्छा उपचार है। खीरे और गाजर का रस भी उपयक्त विधि से पिलाएं, भोजन में कार्बोहाइडेट तथा प्रोटीन काफी हो एक दिन में 500 ग्राम कार्बोहाईड 150 ग्राम प्रोटीन उत्तम माना गया है। जिगर की सूजन कम करने में जामुन का सेवन भी बेहतर माना गया है। प्रातः खाली पेट 250 ग्राम पका जामुन खिलाएंएक छोटे गिलास इस्तेमाल पानी में एक छोटा नींबू निचोड़े तथा थोड़ा नमक डाले, इस बनी खुराक को दिन में तीन बार अर्थात् प्रातः दोपहर एवं शाम को पीने दें। यकृत बढ़ने और जलोदर होने पर 50 ग्राम करेले का रस पानी में मिलाकर पीने से लाभ होता है। क्या खाएं :- हल्का सुपाच्य भोजन लें। जौ के आटे की रोटी, जौ का सत्तू, मूंग की दाल, साबूदाने की खीर, बाली आखरोट सेवन करें। फलों में पपीता, तरबूज, सेब, नीबू, अनार, आंवला, नारियल खाएं। सब्जियों में करेला, बैंगन, मूली, लौकी, धनिया, गाजर, बथुआ का साग सेवन करे। शुद्ध गन्ने का रस और कच्चे नारियल का पानी सुबह-शाम पिएंकडवी मली और उसके पत्तों का रस, एक कप की मात्रा में सुबह-शाम पीने और इसका शाक रोजाना खाने से रोग में आराम मिलता है। अनार आंवले व मूली का रस 2-2 चम्मच मिलाकर 2-3 बार नियमित पीने से शराब के सेवन से उत्पन्न जिगर का शोथ ठीक हो जाता है। क्या न खाएं, क्या न करें :- भारी, गरिष्ठ, घी, तेल में तले मिर्च मसालेदार भोजन का सेवन न करें। घी और चीनी का प्रयोग बहुत ही कम करें। बंद ही कर दें तो अच्छा होगा, शराब, चाय, कॉफी, तंबाकू, मांस, मछली, मिठाइयां न खाएं-पिएं। दर्द के स्थान पर गर्म पानी की थैली से सेंक करें। दिन में सोने की आदत को टालें। ज्यादा परिश्रम के काम न करें। रात्रि में देर तक जागरण न करें। इस कुछ चीजों में यकृत का पोषण एवं रोग ठीक होने में सहायक होता है :- छाछ, बथुआ, लीची, अनार, जामुन, चुकन्दर यकृत को शक्ति देता है। गैस और कब्ज दूर करता है। ये नित्य खाएं। सूर्योदय से पहले उठकर मुंह साफ करके एक चुटकी कच्चे चावल की फंकी लेंयह प्रयोग यकृत को मजबूत करने के लिए बड़ा अच्छा है। पपीता पेट साफ करता है। यकृत को ताकत देने वाला है। छोटे बच्चे को भी जिनका यकृत खराब रहता है, उन्हें पपीता खिलाना चाहिए। यकृत रोग ग्रस्त पित्त दोष ग्रस्त व्यक्तियों को बार-बार गाजर खानी चाहिए। 3 से 8 वर्ष तक के बच्चे को आधा चम्मच करेले का रस नित्य देने से यकृत ठीक रहता है या पेट साफ रखता हैयकृत बढ़ने पर 50 ग्राम करेले का रस पानी में मिलाकर पिलाने से लाभ होता है। बैंगन से भी बढ़े हुए यकृत में आराम होता है। एक गिलास पानी मिश्रण में 12 ग्राम तुलसी के पत्ते उबालकर चौथाई रहने पर छानकर पीने से यकृत बढ़ना एवं यकृत के अन्य रोग ठीक हो जाते हैं। पुनर्नवा जिसे हम पत्थर चट्ट, सांथी या बिसखोपड़ा भी कहते हैं। इस पौधे के सभी पंखडियां हिस्से उपयोगी हैं। इसकी जड़, पत्तियां, बीज और तने से पुनर्नवा नाम की दवा बनाई जाती हैं। इस औषधि का मुख्य उपयोग शरीर में सूजन को कम करना है। यह वृक्क की क्रिया को ठीक करता है। तथा यकृत की कार्य प्रणाली को भी सुधारता है। बहुत से ग्रामीण वैद्य इसका प्रयोग जॉन्डिस के इलाज में करते हैं। इसमें एक अल्कलॉइड पायातेल जाता है, जो लाभकारी है। इससे बनी दवा, पुनर्वासव, शोथारी, मंडूर, पुनर्वादि मडूर रिऐक्शन आयुर्वेदिक दवा की दुकानों में आसानी से मिल जाता है। बहुत से रोगियों में जलोदर की शिकायत होती हैं। इसके स्वरस से काफी फायदा होता है। चिरचिरी यह एक झाड़िय मिलाकर वनौषधी है, जो हर जगह पायी जाती है। इसे अमरतोष भी कहते हैं। स्थानीय भाषा में इसे लटगीरी कहते हैं। चिरचिरी के तना या पत्ता का स्वरस 20 मि.ली, की मात्रा में लेने से गिलास पेशाब खुलकर होती है तथा सूजन भी कम होती है। ॥ रामा निवास, चौधरी टोला, महेन्द्र, पटना-06, मो. 09334940582