पित्ताशय में पथरी की उपस्थिति एक विस्फोटक 24 घंटे में 2-3 बार खाली हो जाता है। जब अनुपात कम होने या कॉलेस्ट्रॉल की मात्रा की तरह होती है जो किसी भी समय संकट भोजन नहीं किया जाता है तो पित्त पित्ताशय में अधिक होने पर कॉलेस्ट्रॉल पित्ताशय में नीचे उत्पन्न कर सकती है। अत: यह पता चलते ही इकट्ठा होता रहता है। इसका जलीय अंश शरीर अवक्षेप के रूप में जमने लगता हैउसके ऊपर कि पित्ताशय में पथरी है, इसका समुचित उपचार में पच जाता है, जिससे पित्त गाढ़ा होता चला पुन: कैल्शियम की तह जम जाती है। इस प्रकार करा लेना चाहिए। जब पित्ताशय में पथरी बन गई जाता है। तह पर तह जमने से छोटी-छोटी पित्ताश्मरी बन हो तो अभी तक कोई ऐसी औषधि नहीं है जो पित्त :- पित्त सनहरे भरे रंग का यकत स्राव है। जाती है। 4. गर्भावस्था तथा मधुमेह में भी उसे गलाकर या तोड़कर बाहर निकाल दे। इसका स्वाद कडवा होता है। यह पाचक रस होते कॉलेस्ट्रॉल की वृद्धि हो जाती है, जिस कारण भी-कभी एसा हो जाता है कि पथरी हुए भी विष तुल्य होता है। यह आंतों का पथरी निर्माण की संभावना बढ़ जाती है। पित्तवाहिनी से होकर छोटी आंत में स्वतः चली उद्वीपक होता है तथा उन्हें क्रियाशील रखता है। 5. असन्तुलित अप्राकृतिक आहार-विहार भी जाती है। यह पथरी के छोटे आकार के कारण इसमें लगभग 80 प्रतिशत जलीय अंश होता है। पथरी बनने का मुख्य कारण होता है। चॉकलेट, संयोगवश ही होता है। पित्ताशय में पथरी उत्पन्न इसमें लवण, रंजक, लेसेथिन व कॉलेस्ट्रॉल होता चाय, कॉफी, बिस्कुट, फास्ट फूड, बैंड आदि में होने पर उसका ऑपरेशन करके पथरी निकाल है। भोजन करने पर इसका उत्पादन ज्यादा हो आजैविक एसिड की अधिकता होती है। हरी देना ही समुचित उपचार है। पित्ताशय में पथरी जाता है। पित्ताशय में एकत्रित पित्त का कुछ अंश साग सब्जी कम खाना, अधिक मात्रा में भोजन, बनने की एक आम जगह है। इसमें एक बार रोग पाचन क्रिया में व्यय होता हैकुछ बाहर निकल कब्ज होना, पानी कम पीना, मांसाहारी भोजन हो जाने के बाद यह शरीर के लिए संवेदनशील जाता है तथा कछ शरीर में समा जाता है। आंतों करने से यह रोग अधिक होता है। 6. अति हो जाता है। पुन: इसमें पथरी बनने की अधिक में पहुंचकर यह भोजन का पाचन करने के साथ निद्रा, मद्यपान, प्रदर रोग, मानसिक तनाव आदि संभावना हो जाती है। ही खाने को सड़ने नहीं देता।के कारण मनुष्य यकृत रोगी हो जाता हैरोगी इस रोग को पुनः न होने देने के लिए नियमित पथरी :- पित्ताशय की पथरी परुषों की अपेक्षा यकत में तैयार हुआ पित्त विकारयक्त, गाढा और दिनचयों और आहार-विहार इस प्रकार रखना स्त्रियों में अधिक पाई जाती है। लगभग 40-50 चिपचिपा होता है जो पित्ताशय में जमा होकर चाहिए कि यह रोग फिर से उत्पन्न न हो। प्रायः यः वर्ष की स्थूल शरीर वाली महिलाएं जो प्रदाह और शोथ पैदा कर देता है। दुषित पित्त ी यह देखा गया है कि पित्ताशय में पथरी बनने के कार्बोहाइड्रेट तथा वसायुक्त भोजन अधिक मात्रा सुखकर कड़ा हो जाता है और फिर पथरी का साथ ही शरीर में स्थूलता आ जाती है। इसके * में लेती हैं, उनमें पथरी बनने की अधिक निर्माण हो जाता है। लिए नियमित व्यायाम, प्राणायाम, योगासन आदि * संभावना रहती है। पथरी बालू के कण, सरसों के लक्षण :- जब पथरी पित्ताशय से निकलकर करते रहना चाहिए। अब हम इस रोग के कारण, : दाने से लेकर अखरोट व अंडे के आकार तक पित्त वाहिनी में पहुंचकर अटक जाती है तो पित्त लक्षण, बचाव आदि के बारे में चर्चा करेंगे। हमें ' * की हो सकती हैसंख्या में 30-40 तक भी हो के रास्ते में अवरोध के कारण असाध्य दर्द होता स्वस्थ रहते हुए ही यह प्रयास करना चाहिए कि वे हमें इस रोग का सामना न करना पड़े। अर्थात् हमें जाता है है। दर्द की लहरें कुछ अंतराल से उठती रहती हैंउन कारणों से बचना चाहिए जिनसे पित्ताशय में कारण :- पथरी बनने के निम्न कारण हो सकते पथरी बनना सम्भव है। हैं :- 1. पित्ताशय में पित्त अधिक समय तक पित्ताशय :- हमारे उदर के दाईं और ऊपर की रूका रहने के कारण 5-10 गुना अधिक मादा तरफ यकृत के निचले भाग से लगा हुआ लगभग होने के बाद और भी गाढ़ा हो जाए और उसमें 4 इंच लम्बा गाजर के समान आकति का जीवाणु का संक्रमण हो जाए तो पथरी बन जाती पित्ताशय होता है। इसका मुख्य कार्य यकृत में है। 2. व्यायाम न करने से, बैठे रहने से, स्थल बने पित्त को इकट्ठा करना है। इसमें लगभग शरीर वालों में तथा गर्भावस्था में पित्त अधिक देर 45cc पित्त जमा रहता है। जब भोजन अमाशय में तक संचित रहने से गाढ़ा हो जाता है जो आगे बढ़ता है तो पित्ताशय से पित्त निकलकर धीरे-धीरे पथरी का निर्माण कर देता है। भोजन में मिल जाता है, जिससे भोजन के वसा 3. यकृत की विकृति के कारण पित्त का निर्माण और प्रोटीन का पाचन होता है। स्वस्थ पित्ताशय ठीक प्रकार से न होने, पित्त में पित्त लवण का 77 है। ठंडा पसीना छूटने लगता है। यह दर्द समय बीतने के साथ-साथ अपने आप कम भी हो जाता है। अरुचि और अपच हो जाता है। अमाशय में शोथ के कारण अमाशय और उसके आस-पास दर्द की अनुभूति होती है। ऐसी स्थिति में पीलिया के लक्षण भी प्रकट हो सकते हैं। चिकित्सा : वेदना के समय :- दर्द निवारक इंजेक्शन व वेदना शामक औषधि के प्रयोग से दर्द तो ठीक हो जाता है परन्तु दर्द के कारण पथरी तो अपनी जगह ही रहती है। गर्म पानी के टब में बैठने से पित्त-वाहिनी में फंसी पथरी निकल जाती है। जब तक दर्द दूर न हो जाए गर्म पानी के टब में बैठे रहें। ठंडा पानी निकालकर गर्म पानी डालते हैंख के शान पर गर्म तौलिये का प्रयोग भी कर सकते हैं। गर्म पानी की बोतल भी प्रयोग कर सकते हैं। स्वच्छ हवादार स्थान में पूर्ण विश्राम करें। ठीक होने तक उपवास करें। वमन हो तो बर्फ का टुकड़ा चूसें, पानी न पिएं। गर्म जल या जैतून जतून के तेल में एक चम्मच नीबू का रस मिलाकर प्रत्येक घंटे में पीते रहें। कुलथी की दाल का पानी पिएं। वेदना के बाद :- आहार-विहार का संयम करें तथा कब्ज़ न होने दें। पेड़ पर प्रतिदिन ठंडे-गर्म पानी की सेंक करते रहें। गर्म पानी में भीगा तौलिया कमर के चारों ओर लपेटें प्रतिदिन व्यायाम प्राणायाम यकत की मालिश करना चाहिए। सप्ताह में एक दिन उपवास करें। दिन में केवल फलों का रस व नींबू पानी ही लें। दूध, मलाई, पनीर, घी आदि वसा युक्त पदार्थों का सेवन न करें। चिकनाई रहित भोजन पथरी के रोगी को लाभप्रद होता हैताजा फल, कुलथी की दाल, साग सब्जी, मलाई रहित मट्ठा, शहद, फलों का सलाद, जामुन, पथरी रोग में लाभकारी है। मांसाहारी भोजन, तले-भूने पदार्थ, सुखा मेवा कदापि न लें। मिर्च मसाला, उत्तेजक पदार्थ तथा मादक द्रव्य का उपयोग बिल्कुल न करें। खीरा, गाजर, लौकी, पपीता, मूली, नींबू का रस का सेवन करें। प्रातः उठकर खाली पेट पानी पिएं। पिए दोपहर में भोजन के साथ प्रतिदिन बाद दो चम्मच हिंग्वाष्टक चूर्ण लें तथा रात को सोते समय त्रिफला चूर्ण 5 ग्राम तथा हरीतकी चूर्ण 2 चम्मच गर्म पानी से लें। योगासन, प्राणायाम, व्यायाम नियमित रूप से करते रहें।
पित्ताशय की पथरी