बवासीर होम्योपैथिक औषधिया

होम्योपैथिक विधि से रोगी की चिकित्सा की बवासीर से रक्त नहीं गिरता। दूसरी प्रकार यानि बाद में होता है। मल के जाती है, केवल रोगी की ही नहीं। रोगी की सभी Internal or bleeding piles में रक्त आता है, साथ नहीं होता और न उसका खून मल के साथ शारीरिक एवं मानसिक स्थिति, रोग के इसे खूनी बवासीर कहते हैं। इसमें मस्से गुदा के मिश्रित होता है। वास्तविक कारण, लक्षणों के आधार पर औषधि भीतर चसक के दर्द, घाव, खुजली, सूजन आदि भोजन :- बवासीर के रोगी को हल्का, पाचक, का चुनाव किया जाता है। प्रत्येक रोगी की पैदा करते हैं। रक्त आता है तथा इसमें मल नर्म, बिना मिर्च-मसाले या तले भोजन करना औषधि वैसी ही रोग स्थिति वाले दूसरे रोगियों से अवरोध रहता है। कई लोगों को Mixed pilesचाहिए। बवासीर के लिए निम्न होम्योपैथिका अलग हो सकती है। होम्योपैथिक सिद्धान्त भी होती है जिसमें कुछ भाग म्यूकस मैम्ब्रेन से औषधियां लक्षणानसार लाभदायक हैं :|अनुसार स्वस्थ व्यक्ति में जो औषधि कोई रोग तथा कुछ चमड़े से ढका रहता है। मिश्रित "11. Aesculus Hip 30 :- Non bleeding लक्षण उपजा सकती है, रोगी व्यक्ति में मौजूद बवासीर के इलावा कुछ लोगों को Mucous 5 piles में लाभदायक हैकिसी प्रकार के वात उन्हीं लक्षणों के आधार पर औषधि चुनाव रोग (piles की भी शिकायत हो सकती है जिससे रोग उपरान्त बवासीर हो तो विशेष लाभदायक मुक्त कर सकता है। होम्योपैथी के सदृश्य |आंव (Mucous) का स्राव अधिक होता है। ॥ हैरोगी ऐसे महसूस करें जैसे मल द्वार में विधान यानि Similia Similibus Curenture Mucous piles या White piles के Caresछोटी-छोटी छड़ियां भरी हों। मल द्वार सूखा, के अनुसार Posra, Syphillis और Sycoses के कम ही होते हैं। |भारीपन, खिंचाव, वेदना, जलन, खुजली। । |आधार पर मूल कारण जानकर यदि पूरी निष्ठा कारण :- बवासीर मुख्यता कब्ज का ही, से उचित औषधि का चुनाव किया जाए तो दुष्परिणाम है। इसके अलावा अन्य कारण हैं 2. Collinsonia Cau30 :- इसके रोगी को बवासीर तो क्या किसी भी भंयकर रोग जैसे कि अरुचि एवं मंदाग्नि होना, यकत में रक्त की कई दिनों तक पाखाना नहीं होता है और मालूम या या दसरे गंभीर रोग जो कई प्रकार की अधिकता, अधिक भोजन करना, मद्यपान, ा मात्र की " होता है कि इसके मल द्वार में लकड़ी के बुरादे ', 'या काठ की टुकड़ियां या बालू के कण भरे हों। शिल्य क्रियाओं में भी चुनौतिया पूर्ण होते हैं, शराब, ताडी, दारू, भांग, गांजा आदि का सेवन होम्योपैथिक औषधि की अल्प मात्राओं से ठीक करना, चाय एवं धुम्रपान, गरिष्ठ भोजन करना, |बिवासीर से रक्त गिरना, बहुत अधिक दर्द और होते देखे गए हैं। अधिक मिर्च-मसालों का सेवन, तेज जुलाब खुजलाहट Collinsonia के व्यवहार से छटे हुए। बवासीर Aesculus के सेवन से पूर्ण ठीक हो बवासीर उस स्थिति को कहते हैं जिसमें एनल तथा दस्तकारक औषधियों का अधिक सेवन, , जाते हैं। बैनाल यानि गुदानाल की रक्त वाहिकाएं बढ़ा पिशाब संस्थान (UT) में गड़बड़ी, अत्यधिको । जाती हैं, संकचित हो जाती हैं और उनमें रक्त मैथुन करना, शारीरिक परिश्रम का अभाव, स्पंज : HamamelicVirQ6:- Bleeding piles या की प्रसिद्ध औषधि हैगुदा द्वार पर कुचलने जैसे स्राव होता है। गुदा द्वार की नसें फूल कर या गद्दीदार कुर्सी पर अधिक बैठना, लम्बे समय दर्द होता है, मस्से बाहर निकल आते हैंरक्त छोटे-छोटे ट्यूमर अर्थात् मटर, मुनक्का, अंगूर या तक Driver का काम करना, क्रोध-चिंता-शोक इससे भी बड़े आकार के मासांकर हो जाते हैं जो एवं निराशा से, लम्बे समय तक रात्रि जागरण की स्रिाव काला, थक्का-थक्का और अधिक मात्रा में अत्यंत कष्टदायक होते हैं। मलद्वार के बाहर या आदत, विलासिता, आनुवांशिक और वंशाणगत गिरता है। कमर में दर्द रहना और पीठ का दर्द अंदर इस प्रकार के उत्पन्न अर्शाकर को दोष, हृदय रोग, यक्ष्मा,खांसी तथा लम्बे समय होता है। हालांकि होम्योपैथिक इलाज में किसी बवासीर, Ilaemorrhoids या Piles कहते हैं। तक तेज एवं गर्म औषधियों का सेवन करने से प्रकार का बाहरी मलहम बगैरह नहीं लगाना चाहिए फिर भी होम्योपैथिक विधि से बना बिवासीर दो प्रकार यानि External or blind or हो जाता है। 4 llamamelic मलहम भी मिलता है। nonbleeding piles और दूसरी प्रकार है लक्षण :- पीड़ित व्यक्ति लम्बे समय से Internal or bleeding piles होते हैं। कुछ 'मलावरोध (कब्ज) के शिकार होते हैंगदा दार 4. Milefolium Q-200 :- स्त्रियों में 80 लोगों को दोनों प्रकार की बवासीर की शिकायत की नसें फूलकर चने एवं मटर आकार की हो। प्रतिशत प्रसवकाल में ही अर्श की उत्पति होती हो सकती है। पहली प्रकार यानि External जाती हैं। मलद्वार में सुरसुरी, खुलजी एवं दर्द हैइसलिए Milefolium piles में मलाशय की Sphincter के बाहर होता है। गुदा मार्ग में, बोझ और मलाशय में विशेषतया गर्भावस्था के दिनों में अर्श रोग में बिवासीर होता है, वह चर्म से ढका रहता है परन्तु अटकने की अनुभूति। खुन गिरता है, खन की 'असहनीय दर्द एवं बिना दर्द के काफी खुन गिरने मस्से बाहर निकल कर फूल जाते हैं। मासांकुर 'पिचकारी-सी चलती है। पाखाना करते समय पर बहुत लाभदायक है। छोटे रहने तक तो पीड़ा नहीं होती किन्तु जलन, जब मस्से बाहर आते हैं तो बहुत दर्द होता है। 5. Badiage3 एक्स 200 एवं उच्च शक्तियां गर्मी, कब्जियत आदि बने रहते हैं। बड़े हो जाएं मुंह का स्वाद खट्टा, तीता एवं बेस्वाद होना।। |:- यह सोरा विषनाशक दवा हैइसके रोगी को तो सम्पूर्ण मलद्वार में कष्ट होता है। इसमें अर्श का रक्त स्राव अमूमन मलत्याग के पहले या शरीर में जगह-जगह गांठें होती हैं, मल् द्वार में प्ठ औषधि के रूप में - भाला मारने जैसा दर्द होता है। रूस में यह अर्श रोग की श्रेष्ठ औषधि के रूप में विख्यात है। इसका मूलार्क शुद्ध जल में डालकर और कपड़ा भिगोकर लगाने से बड़े और कड़े मस्से भी गल जाते हैं। 6. Antimonium Crudum 3-200 :खट्टा खाने की तीव्र इच्छा, कब्ज एवं अतिसार पर्यायक्रम से आए, मल द्वार के चारों ओर जलन एवं खुजली, रक्त स्राव, आंव युक्त हो, मलद्वार से निरन्तर स्राव टपकता हो। श्लेष्मा स्रावी बवासीर की यह एकमात्र दवा है। 7. Acid Sulth 3-200 :- इसका रोगी में सदा एक प्रकार का रस निकलता है जिससे जाता है दर्द धीरे-धीरे प्रारम्भ होता है तथा मल त्यागने के बाद समाप्त हो जाता है। रोगी को काफी * से घृणा और शराब पीने की बलवती इच्छा रहती है। 8. Paeonia Q3 शक्ति :- बवासीर कीजानी-मानी औषधि है। मलाशय के चारों तरफ का रंग नीला एवं असहनीय दर्द होना, । खुजली, जलन एवं कुतरने जैसी पीड़ा होतीहै। रक्तस्रावी मस्से बाहर निकलते हैं और उसमें इतना दर्द होता है कि रोगी समझता हैकि मृत्यु हो जाए तो अच्छा है। प्रत्येक बार पाखाना होने पर उसे 3-4 घंटे तक असीम कष्ट होता रहता है। Paeonia Q3 को * मलहम या Olive oil में बवासीर पर लगाने से चैन मिल सकता है। 9. नक्स बौम एवं सल्फर :- रात को Nux vom 30 और सुबह Sulphar 30 कुछ देर देते रहने से कब्ज और बवासीर में बहुत लाभ होता है। 10. Ratania-3-30 :- दोनों प्रकार की बवासीर में लाभदायक है। मलाशय के चारों तरफ फटे घाव, भगन्दर, खुजली, जलन जैसे कि वहां मिर्च बुर्क की हो। मल त्यागने से पूर्व एवं शौच समय दर्द होता है। इसके अतिरिक्त एड्स, एक्ट, एपिस, सिलिसिया, थाजा, कैल्केरा, फ्लूअर तथा अन्य अनेक औषधियां हैं जो रोगी के स्वभाव एवं रोगावस्थानुसार देते हैं।