सृष्टि में यदि खाद्य पदार्थों की बात करें तो ईश्वर दध में कैल्शियम तो है किंत दध में यरिक एसिड - ने सर्वप्रथम पत्तियों का सृजन किया। मानो ईश्वर तथा कोलेस्ट्रॉल शरीर को रोगी बनाते हैं। दध की मनुष्य को संकेत दे रहा हो कि मैंने तुम्हारे भोजन शदता भी आज के यग में पर्ण रूप से संदिग्ध ही की पहली खुराक तुम्हें दे दी है। वास्तविकता यह है। जिस जानवर का दध हम पीते हैं उसकी है कि हमारे भोजन में यदि पहली खुराक पत्तियों शारीरिक रुग्णता का प्रभाव भी उसके दूध के की हो सके तो स्वास्थ्य की और उठने वाला यह माध्यम से हमारे शरीर पर पड़ता है। यदि शरीर में पहला कदम साबित हो सकता है। कैल्शियम की कमी है तो हम आपको बताना विचारणीय है कि हमारे सभी देवताओं का चाहेंगे कि वैज्ञानिक शोधों में आश्चर्यजनक सत्य पूजन भी पत्तियों से किया जाता है। क्यों? क्योंकि उजागर हुए हैं। जहां एक ओर मां के दूध में 28 यही उचित है। देवताओं में प्रथम पूज्य गणपति जी कैल्शियम, गाय के दूध में 120 कैल्शियम, भैंस महाराज का पूजन दूर्वा से किया जाता है। दूर्वा के के दूध में 210 कैल्शियम पाया जाता है वहीं . बिना गणेश जी मोदक का भोग स्वीकार नहीं शलजम की पत्ती में 710, इमली की पत्ती में करते। इसी प्रकार विष्णु भगवान का भोग तुलसी 1485 तथा सरसों के पत्तों में 3095 कैल्शियम । पत्र तथा शिव जी का भोग बेल पत्र के बिना पाया जाता है। यदि हम कुछ पत्तियों का सेवन सम्भव नहीं है। ऐसा विधान इसीलिए बनाया गया करने लगे तो कैल्शियम की पूर्ति भी हो जाएगी जिससे मनुष्य भी इससे सीख लें और अपने भोजन और यूरिक एसिड व कोलेस्ट्रॉल के दुष्प्रभावों से में पत्तियों को प्रथम स्थान दें। पत्तियों में हम बच जाएंगे। पत्तियों में शोधन का गुण होने के क्लोरोफिल नामक तत्व पाया जाता है जो शरीर में कारण यह अंदर संचित मल को साफ करने में रोगों से लड़ने की क्षमता पैदा करता है। यदि मददगार हैं। पत्तियों के इसी गुण के कारण इनका आपके शरीर में यह तत्व रहेगा तो कोई भी सेवन करने से शरीर में मल का संचय रूक जाता संक्रामक रोग आप पर आसानी से आक्रमण नहीं है। शरीर के अंदर मल की सड़न के कारण बनने कर सकेगा। बात चाहे क्लोरोफिल की हो, वाली गैस तथा एसिड्स से मुक्ति मिलने लगती है। आयोडिन की अथवा अन्य खनिज लवणों की, ये इसी कारण पत्तियों का सेवन करने वाले सभी सारे तत्व आग पर चढ़ने से नष्ट हो जाते हैंअतः जानवरों के मल में भी बदबू नहीं होती जैसे पत्तियों उत्तम है कि इसका उपयोग आग पर चढ़ाए बिना का सेवन करने वाला हाथी, बकरी, गाय, भैंस, ही करना चाहिए। घोडा आदि। इन पशुओं से किसी प्रकार का व्यवहार में पहली खुराक के रूप में संक्रामक रोग भी नहीं फैलता जबकि प्लेग जो आसानी से उपलब्ध कुछ हरी पत्तियां जैसे-धनिया, चूहों से फैलता है, बर्ड फ्लू जो मुर्गियों से फैलता पुदीना, पालक, मूली के पत्ते, कढी पत्ता, बेल पत्र. है तथा स्वाइन फ्लू जो सुअर से फैलता है, से सभी तुलसी, दूर्वा आदि को धोकर, पानी मिलाकर जानवर पत्तियों का सेवन नहीं करते हैं। बिल्लियां केने मांसाहारी होते हैं तथा धौन मिक्सी में पीसकर छान लें। इसी के साथ कुछ हरा और कुत्त आंवला, खीरा, लौकी आदि भी डाल लेंस्वाद के होते हैं। इनका मल अत्यंत दुर्गंधयुक्त तथा चिपकने लिए मौसम के अनुसार कोई मीठा फल जैसे सेब वाला होता है। आश्चर्य की बात है सर्वश्रेष्ठ या जा जटि लता छ । र त कहलाने का अधिकारी मनुष्य का मल सबसे नमक मिलाकर स्वादिष्ट जस लेना सर्वोत्तम है। आधिक दुर्गध युक्त होता है क्योंकि यह अनाज, यह शोधक भी है और अनेक आवश्यक तत्वों की १ पक्वाहार, मांसाहार तथा दूध का सबसे अधिक पूर्ति करता है। सीजनल होने के कारण सस्ता भी शौकीन होता है। हैदोपहर के अपक्वाहार के साथ भी उपरोक्त यदि शरीर को रोगमुक्त बनाना है तथा साधना वर्णित 3-4 तरह की पत्तियों को मिलाकर में प्रगति करनी है तो भोजन को भी सूक्ष्म बनाना स्वादिष्ट चटनी का सवेन अति लाभकारी है। जाडों अति आवश्यक है। भोजन के चार तत्व हैं वायु के मौसम में विशेष रूप से पालक, धनिया, मेथी, तत्व (पत्तियां), अग्नि तत्व (फल), जल तत्व बथुआ आदि को पीसकर आटे के साथ मिलने का (सब्जियां), पृथ्वी तत्व (अनाज)। इनमें सबसे रिवाज भी इसीलिए बनाया गया है ताकि पत्तियों सूक्ष्म वायु तत्व ही है जो पत्तेदार साग-सब्जी में का पूरा लाभ मिल सके। पाया जाता है। ये पत्तियां क्षारीय प्रकृति की होने के डॉक्टर शरीर में कैल्शियम की पूर्ति हेतु दूध कारण रक्त में अम्लता को कम करती हैं। कुछ का सेवन करने की सलाह देते हैं। यह सत्य है कि पत्तियां जैसे- चाय, तम्बाकू आदि की पत्ती भयंकर मोटापा, मधुमेह व उच्च रक्तचाप 1 ।। अम्लीय होती हैं। जानवर भी इन पत्तियों को खाना पसंद नहीं करते इसी कारण जहां इन पत्तियों की खेती होती है वहां जानवरों से सुरक्षा हेतु कोई बाड़ा नहीं बनाना पड़ता। अतः इन पशुओं से सीख लें दीदी और इन पत्तियों का त्याग कर देने में ही भलाई है। एसिड से सामान्य रूप से सभी साग-सब्जी की पत्तियां शरीर की क लि ही अवस्था में अनेक प्रकार को अलग-अलग पत्तियां उसकी का अपना विशेष महत्व है। के दर्वा (दब घास ) की पत्ती : आंतरिक अथवा में बाहय रक्तस्राव को रोकने व उदर रोगों में विशेष बताना सहायक। सत्य तुलसी : सभी प्रकार के संक्रमण व दर्द में 28 उपयोगी। भैंस की उन्ना. हाई बी पी रक्ताल्पता में प्रभावी वहीं . पत्तागोभी : मूत्रल एवं किडनी रोग में विशेष में । उपयोगी, अल्सर, नपुंसकता, एलर्जी, दुर्बलता में कैल्शियम । लाभकारी। सेवन जाएगी । धनिया पत्ती : नेत्र रोग वाले विटामिन बी का से । अभाव व रक्ताल्पता में उपयोगी। के नीम की पत्ती : अस्थमा, मधुमेह, चर्म-रोग, खून में की अशुद्धता में उपयोगी एवं प्रभावशाली इनका एटिबायटिका जाता पपीते का पत्ता : रक्त में प्लेटलेट्स बढ़ाने बनने में विशेष।है। शरीफा (सीताफल ) का पत्ता : मधुमेह में सभी विशेष उपयोगी। पत्तियों बेलपत्र : संक्रमण, टी.बी., कब्ज, बी.पी., बुखार, भैंस, हृदय रोग व अस्थमा में लाभकारी। का आम के पत्ते : कब्ज, एसिडिटी में लाभकारी। जो ज्वारे की पत्ती : कैंसर, रक्तस्राव, रक्ताल्पता, फैलता । रक्तशोधन, कोलाइटिस में सहायक।। सभी रख बिल्लियां पीपल के पत्ते : पाइल्स, फिशर, फिस्टुला, स्त्री धौन रोग मासिक धर्म में बहु-उपयोगी। चिपकने जामुन के पत्ते : चर्म रोग, थेलिसिमिया, आयरन, सर्वश्रेष्ठ विटामिन सी, कैल्शियम में आवश्यक। सबसे अमलतास के पत्ते : पीलिया, लीवर रोग, अनाज, एक्जीमा, पेट कमि, सोराइसिस अपच त छन । अधिक लाभकारी। नींबू पत्ते : अतिरक्त गर्मी, रोग प्रति रोधकता साधना बढ़ाने, कफ रोकने, सिर दर्द, गठिया, रूसी में बनाना सहायकवायु अमरूद के पत्ते : खांसी, दंत रोग, कफ में तत्व लाभकारी। सबसे मूली के पत्ते : लीवर के रोगों में लाभकारी। में पालक : रक्ताल्पता को दूर कर खून बढ़ाने वाला के आयरन का भंडार। कुछ एलोविरा : गुर्दे के रोगों को दूर कर नवयौवन देने भयंकर वाला। 1 ।। अम्लीय होती हैं। जानवर भी इन पत्तियों को खाना पसंद नहीं करते इसी कारण जहां इन पत्तियों की खेती होती है वहां जानवरों से सुरक्षा हेतु कोई बाड़ा नहीं बनाना पड़ता। अतः इन पशुओं से सीख लें दीदी और इन पत्तियों का त्याग कर देने में ही भलाई है। एसिड से सामान्य रूप से सभी साग-सब्जी की पत्तियां शरीर की क लि ही अवस्था में अनेक प्रकार को अलग-अलग पत्तियां उसकी का अपना विशेष महत्व है। के दर्वा (दब घास ) की पत्ती : आंतरिक अथवा में बाहय रक्तस्राव को रोकने व उदर रोगों में विशेष बताना सहायक। सत्य तुलसी : सभी प्रकार के संक्रमण व दर्द में 28 उपयोगी। भैंस की उन्ना. हाई बी पी रक्ताल्पता में प्रभावी वहीं . पत्तागोभी : मूत्रल एवं किडनी रोग में विशेष में । उपयोगी, अल्सर, नपुंसकता, एलर्जी, दुर्बलता में कैल्शियम । लाभकारी। सेवन जाएगी । धनिया पत्ती : नेत्र रोग वाले विटामिन बी का से । अभाव व रक्ताल्पता में उपयोगी। के नीम की पत्ती : अस्थमा, मधुमेह, चर्म-रोग, खून में की अशुद्धता में उपयोगी एवं प्रभावशाली इनका एटिबायटिका जाता पपीते का पत्ता : रक्त में प्लेटलेट्स बढ़ाने बनने में विशेष।। शरीफा (सीताफल ) का पत्ता : मधुमेह में सभी विशेष उपयोगी। पत्तियों बेलपत्र : संक्रमण, टी.बी., कब्ज, बी.पी., बुखार, भैंस, हृदय रोग व अस्थमा में लाभकारी। का आम के पत्ते : कब्ज, एसिडिटी में लाभकारी। जो ज्वारे की पत्ती : कैंसर, रक्तस्राव, रक्ताल्पता, फैलता । रक्तशोधन, कोलाइटिस में सहायक।। सभी रख बिल्लियां पीपल के पत्ते : पाइल्स, फिशर, फिस्टुला, स्त्री धौन रोग मासिक धर्म में बहु-उपयोगी। चिपकने जामुन के पत्ते : चर्म रोग, थेलिसिमिया, आयरन, सर्वश्रेष्ठ विटामिन सी, कैल्शियम में आवश्यक। सबसे अमलतास के पत्ते : पीलिया, लीवर रोग, अनाज, एक्जीमा, पेट कमि, सोराइसिस अपच त छन । अधिक लाभकारी। नींबू पत्ते : अतिरक्त गर्मी, रोग प्रति रोधकता साधना बढ़ाने, कफ रोकने, सिर दर्द, गठिया, रूसी में बनाना सहायकवायु अमरूद के पत्ते : खांसी, दंत रोग, कफ में तत्व लाभकारी। सबसे मूली के पत्ते : लीवर के रोगों में लाभकारी। में पालक : रक्ताल्पता को दूर कर खून बढ़ाने वाला के आयरन का भंडार। कुछ एलोविरा : गुर्दे के रोगों को दूर कर नवयौवन देने भयंकर वाला।
गुणकारी पतियां