शास्त्रों में लिखा है कि इस प्रकार जल पीने वाला मनुष्य रोग एवं वृद्धावस्था से मुक्त होकर सौ वर्ष तक जीवित रहता है। एक व्यक्ति को एक दिन में कम से कम दो से तीन लीटर तक जल । अवश्य पीना चाहिये। खाने से आधा घंटा पूर्व एक खाने के एक घंटे बाद जल का सेवन 'हितकर होता है। यदि आवश्यक हो तो खाने के मानव शरीर पाँच प्राकतिक तत्वों से निर्मित होता को शद्ध सात्विक आहार से भरें एक भाग जल बीच में दो तीन चूंट जल लिया जा सकता है। . है। यथा- पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु एवं आकाश। से व एक भाग खाली वायु के लिए छोड़ दें। इस 6. सूर्य :- जीवन की रक्षा करने वाली सभी यह भा प्रकृति का हा एक विचित्र विधान ह कि प्रकार का आहार शाघ्र पचन वाला, शाक्त दन शक्तियों का मल स्रोत सर्य को ही बताया गया इन्हीं पाँच तत्वों से मानव बहुत से रोगों की 'वाला, सप्त धातुओं का पोषण करने वाला, ला है। हमारे जीवन में सूर्य किरणों का बहुत महत्व प्राकृतिक चिकित्सा कर सकता है। आयु, तेज व बल को बढ़ाने वाला, शारीरिक व|है। प्रात:कालीन उगते हुए सूर्य को किरणों के 'प्रकृति ने हमें आठ ऐसे चिकित्सक या ऐसी मानसिक शक्ति को पोषण देने वाला होता है। सेवन से बहुत-सी बीमारियों से बचाव हो सकता वस्तुएं प्रदान की हैं जो हर समय हमें सर्व सलभ 'आहार से ही शरीर में सप्त धातएं बनती हैंहैं और जिनके सहयोग से तथा उचित सेवन से गरिष्ठ भोजन हानिप्रद होता है। सच्ची भूख लगने है। इसे सूर्य किरण चिकित्सा के नाम से जाना हम यथा सम्भव आरोग्यता प्राप्त कर सकते हैं। पर ही भोजन करना चाहिये। भोजन शान्तिपूर्वक जाता है। इसके विषय में विस्तृत विवरण पाठक ये हैं 1. वाय 2. आहार 3. उपवास 4 करना चाहिये। कहा भी है कि 'भजन' व गण "मेरी तुलसी" अंक तृतीय वर्षा ऋत अंक व्यायाम 5. जल 6. सूर्य 7. विचार 8. निद्रा।। ।' भाजन' एकान्त का ही लाभदायक होता है। । 2017 में देख सकते हैं। सर्य के प्रकाश से रोग यहाँ हम पाठक वर्ग के ज्ञान के लिये संक्षेप में 13 उपवास :- उपवास का शारीरिक व प्रतिरोधक शक्ति का विकास होता है। सूर्य का इनके विषय में चर्चा करेंगे। मानसिक स्वास्थ्य दोनों के लिए बहुत ही महत्व प्रभाव मनुष्य के शरीर व मन पर बहुत गहरा 1. वायु :- वायु प्रकृति द्वारा प्रदत्त सर्व सुलभ ।है। यदि हम सप्ताह में एक दिन का उपवास करें पड़ता है। चिकित्सा जगत का ऐसा विश्वास है, एक अमोध चिकित्सक है। वाय हमारे शरीर में ' तो हमारी शरीर के नाड़ी तंत्र को विश्राम मिलेगी, कि सूर्य किरणों के सेवन से प्रत्येक प्रकार के इससे हमारा शारीरिक स्वास्थ्य बढ़ेगा। उपवास रोगों को शान्त किया जा सकता है। प्राण रूप में स्थित है। प्रात:कालीन ब्रह्मबेला की के दिन यदि हम अपने विचारों को भी पवित्र । वायु का अपना एक अलग ही महत्व है। इसालए रखेंगे तो हमें मानसिक शान्ति भी प्राप्त होगी। 7. विचार :- विचार शक्ति में एक महान प्रात:काल ब्रह्मकाल में भ्रमण करना सौ रोगों की आज के परिवेश में तो हम उपवास के दिन और उद्देश्य छिपा रहता है। हमें अपने विचारों को 'एक रामबाण दवा है। प्रात:काल वायु सेवन करने अधिक मात्रा में गरिष्ठ भोजन का उपभोग करने सदा-सर्वदा शुद्ध एवं पवित्र रखना चाहिए। शुद्ध से देह की धातुएं व उपधातुएं शुद्ध एवं पुष्ट होती लगे हैं जो और अधिक हानिकारक है। उपवास एवं पवित्र विचार एक जीवनी शक्ति के रूप में हैं. समस्त इन्द्रियों को पुष्टि एवं बल मिलता है यदि हो सके तो निर्जल, ना हो तो फलों के जूस' कार्य करते हैं। आरोग्य लाभ के लिए मनुष्य को गतं मनष्य बटितान निरोग एवं बलवान बनता आदि पर ही रह कर करें। अन्न एवं ठोस आहार विचार शक्ति का आश्रय लेना चाहिये। यह दढ शट भमि शद्ध जल शद्ध प्रकाश का पूर्ण त्याग करें। यदि ना कर पाये तो सप्ताह विचार कि "मैं निरोगता को प्राप्त हो रहा हैं" आदि मनुष्य जीवन के लिये बहुत आवश्यक SC में एक दिन केवल एक समय थोड़ी मात्रा में मनुष्य को आरोग्यता की ओर ले जाता है। दूषित बताये गये हैं। शरीर, मन, प्राण, प्रसन्नता, ओज, 7 भोजन ग्रहण करें। उपवास करने से मनुष्य की तेज, बल, चिर यौवन एंव निरोगता के लिए शुद्ध । आत्मिक शक्ति भी बढ़ती है। विचारों से मन भी रूग्ण होकर, शरीर भी रोगी हो जाता है। असल में विचारों का प्रभाव सीधा वायु अतिआवश्यक है जो हमें प्रात:भ्रमण से 4. व्यायाम :- जीवन में प्रसन्नता, स्वास्थ्य एवं व हमारे स्वास्थ्य पर पड़ता है। । पर्याप्त रूप से प्राप्त हो जाती हैइसीलिए सौन्दर्य के लिए व्यायाम अति आवश्यक है। प्रात:काल का वायु सेवन अमृतपान कहा गया है। व्यायाम के अन्तर्गत सूर्योपासना, प्राणायाम एवं 8. निद्रा :- जिस प्रकार स्वास्थ्य रक्षा के लिये अनेकों योगासन आदि आते हैं। व्यायाम से शरीर स्वच्छ जल, वायु, भोजन आदि की आवश्यकता 2. आहार :- हमार शारारिक स्वास्थ्य एव के अंगों का विकास होता है, थकावट दूर होती, होती है, उसी प्रकार स्वास्थ्य के लिए निद्रा भी भोजन का परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध है। हमारे है एवं नयी स्फति पैदा होती है। जठराग्नि तेज परम आवश्यक है। प्रगाढ निद्रा से मनुष्य का मानसिक स्वास्थ्य एवं भोजन का भी परस्पर होती है व आलस्य मिट जाता है। कार्य करने की आलस्य दर होकर पष्टि, बल, उत्साह की वृद्धि घनिष्ठ सम्बन्ध है। कहावत भी है- "जैसा खाये शक्ति बढती है, मोटापा नहीं रहता व शरीर के होती है। रात्रि में सविचारों का स्मरण करते हुए अन्न वैसा हो मन"। हमें स्वस्थ रहने के लिए अंग पष्ट हो जाते हैं। यथोचित व्यायाम से प्रकृति, शान्ति से सोना चाहियेशरीर का वस्त्र ढीला स्वल्प एवं शद्ध सात्विक भोजन ही ग्रहण करना के विरुद्ध लिया गया गरिष्ठ भोजन भी पच जाता होना चादि। उत्तम स्वास्थ्य के लिए सात्विक चाहिये। सात्विक आहार से शरीर की सभी है, तथा शारीरिक शिथिलता दूर होती है। 'निद्रा आवश्यक है। सोने से पहले मन को समस्त धातुओं को उचित पोषण प्राप्त होता है। आहार जल 5. जल :- स्वास्थ्य की दृष्टि से जल का स्थान चिन्ता, भय आदि से मुक्त करके सोना चाहिए। स्वल्प भी होना चाहिये- "स्वल्पाहार; हमारे जीवन में बहत ही महत्वापूर्ण है। सोकर उपरोक्त आठ प्रकति द्वारा सुगमता से उपलब्ध सखावहः" थोड़ा आहार स्वास्थ्य के लिये उठते ही यथोचित मात्रा में जल पीना बहुत ही वस्तुओं का उपयोग यदि मनुष्य उचित प्रकार से उपयोगी होता हैआहार उतना ही करें जो हितकर कहा गया है। रात में तांबे के बर्तन में करता रहेगा तो स्वास्थ्य लाभ होगा ही होगा। । सुगमता से पच जायेकहा गया है कि हमें रखा हुआ जल सुबह सोकर उठते ही पीने की । अपनी भूख के चार भाग करने चाहिये। दो भाग आदत बहुत से रोगों को पैदा ही नहीं होने देती।
सर्व सुलभ आठ प्राकृतिक चिकित्सक