कितना कारगर है पथरी का होम्योपैथिक निदान


जब शरीर के किसी भाग में कैल्शियम एकत्र होकर छोटे-छोटे पत्थर के टुकड़ों का रूप ले लेता है, तो इन पत्थर के टुकड़ों को चिकित्सकीय भाषा में स्टोन या पथरी कहा जाता है। पथरी क्यों बनती है? कैल्शियम मेटाबोलिज्म की स्वाभाविक प्रक्रिया में बदलाव आने के कारण ही पथरी का रोग उत्पन्न होता है। कैल्शियम की स्वाभाविक प्रक्रिया में अंतर अनियमित दिनचर्या और कैल्शियम युक्त पदार्थों का अधिक मात्रा में सेवन करने से आता हैअनियमित दिनचर्या से आशय असमय सोना, जागना, खाना-पीना तथा मल-मूत्र का त्याग करना है। पथरी के प्रकार :- पथरी मुख्यतः दो प्रकार की होती है। 1. मूत्र संस्थान की पथरी (रीनल स्टोन), 2. पित्ताशय की पथरी (बिलियार स्टोन)। ' मूत्र संस्थान की पथरी :- मानव शरीर में दो गुर्दे होते हैं, बायीं ओर तथा दायीं ओर। ये गुर्दे शरीर में फिल्टर का कार्य करते हैं। दोनों गुर्दो से अलग-अलग दो मूत्रवाहिनी नलियां मूत्राशय में जाकर खुलती है। पथरी दायें या बायें गुर्दे में से किसी एक में या कभी-कभी दोनों गुर्दो में भी हो सकती है। इसके अलावा पथरी मूत्रवाहिनी नलिकाओं या मूत्राशय के किसी भाग में भी हो सकती है। रोगी के लक्षण :- रोगी के मूत्र संस्थान या गुर्दो गुदा में पथरा हान पर रागा का असहनाय दद हाता ह जिसे 'रीनल कोलिक' के नाम से पुकारते है। यदि पथरी गर्दै में है तो पीठ के उस भाग में तकलीफ होती है। जिस दिशा में पथरी है। दर्द प. रात्रि में ही अधिक होता है और कभी-कभी यह पेट के निचले हिस्से तक भी चला जाता हैयदि पथरी मूत्रनलियां या मूत्राशय में है, तो दर्द के साथ-साथ रूक-रूककर बार-बार पेशाब आता है। पेशाब करने में दर्द और जलन होती है। यह रोगी के लिए बहत कष्टदायक स्थिति होती है। कभी-कभी तो पेशाब रूक भी जाती है। रोग का निदान :- पथरी का निदान रोगी के लक्षणों के आधार पर पेशाब की जांच में कैल्शियम ऑक्जालेट के कण पाए जाने पर सादा या आई.वी.पी. एक्स-रे या अल्ट्रासाउण्ड के आधार पर किया जा सकता है। पेशाब रुकने या बार-बार आने की तकलीफ प्रोस्टेट ग्रंथि में वृद्धि प्रायः वृद्धावस्था में ही होती है और इसे रेक्टल एग्जामिनेशन (मलद्वार से परीक्षण) द्वारा जांच जा सकता है। जबकि पथरी का निदान एक्स-रे द्वारा ही किया जा सकता है। पित्ताशय की पथरी :- जैसे कि नाम से ही स्पष्ट है, इसमें पथरी पित्ताशय (गाल ब्लैडर) में बनती है। कभी यह पित्त नलिका में भी बनती है जो पित्ताशय से पित्त लेकर छोटी आंत में खुलती है। यह एक या अनेक टुकड़ों में हो सकती है। मानव शरीर में पेट के दायीं ओर ऊपर के हिस्से में पसलियों के नीचे यकृत (लीवर) होता है। इसमें भोजन में वसा (चर्बी) को पचाने वाला पाचक रस पित्त पैदा होता है जो पित्ताशय में पाचक इकट्ठा होता है। मुख्य पित्तवाहिनी नलिका छोटी इकट आंत, जिसे डयूडेनम कहते हैं मैं पित्त पहुंचकर भोजन की चर्बी को पचाता है। पित्ताशय की पथरी में पत्थर के टुकड़े या तो पित्ताशय में बनते हैं या फिर पित्तवाहिनी नलिका में बनते हैं। रोग के लक्षण :- पित्ताशय की पथरी में भी यकृत वाले हिस्से में पेट के ऊपरी भाग में दाहिनी तरफ असहनीय दर्द होता है। इस दर्द को बिलिथरी कोलिक (पित्तशूल) कहते हैं। यह दर्द कभी-कभी पीछे पीठ की तरफ भी चला जाता है। दर्द के साथ-साथ उल्टी होती हैं व जी मिचलाता है. हल्का बखार भी रहता है। यह रोग परुषों की अपेक्षा उन प्रौढ महिलाओं में अधिक होता है जिनको जल्दी-जल्दी अधिक संतान उत्पन्न हो जाती है। कभी-कभी दर्द असहनीय नहीं होता लेकिन यकृत वाले भाग में हल्की सूजन व कड़ापन होता है व छूने या दबाने पर दर्द का अनुभव होता है। यदि कामन वाइल डक्ट (मुख्य पित्तवाहिनी नलिका) में पथरी है तो दर्द २ के साथ-साथ भूख न लगना, आंखें या पेशाब । पीली होना एवं शरीर का पीला पड़ना जैसे लक्षण भी दिख सकते हैं। रोग का निदान :- लक्षणों के आधार पर आई. वी.पी. एक्स-रे और अल्ट्रासाउण्ड निदान से रोग की जांच की जा सकती है। पथरी के रोगों का खान-पान :- किसी भी तरह की पथरी वाले रोगी को पानी अधिक से अधिक मात्रा में पीना चाहिए। बीज वाले फल व सब्जियां जैसे टमाटर, बैंगन, अमरूद और हरी पत्तियों वाली भाजी का प्रयोग न करें। गरिष्ठ आहार के स्थान पर हल्का सुपाच्य आहार ही लें। पथरी का होम्योपैथी उपचार :- पथरी रोग का होम्योपैथी चिकित्सा प्रणाली में बहुत ही सफल इलाज है। रोग की कोई एक विशेष औषधि नहीं है बल्कि रोगी के पूरे लक्षणों के आधार पर जिस दवा का भी चुनाव किया जाता है वही दवा पथरी को या तो गला देगी या पथरी घुलकर निकल जाएगी। अनेक मरीज होम्योपैथी औषधियों के सेवन से बिना ऑपरेशन कराएं पूर्ण रूप से पथरी से मुक्ति पा चुके हैं। शल्य क्रिया के द्वारा पत्थर का टुकड़ा तो शरीर से निकाल दिया जाता है किन्तु शरीर की वह क्रिया जिसके बिगड जाने से सामान्य कैल्शियम एकत्र होकर पथरी का रूप ले लेता है जिस तरह पहले थी वैसे ही बनी रहती है। परिणामस्वरूप अनेक रोगियों में ऑपरेशन के बाद भी पुनः पथरी बन जाती है। जबकि होम्योपैथी औषधियों से शरीर की वह प्रक्रिया ही दुरुस्त कर दी जाती है जिसके चलते शरीर में पथरी बनती है। पथरी के रोगी को दी जाने वाली होम्योपैथी औषधियों में लाइकोपोडियम, कल्केरिया कार्ब, ब्रायोनिया, चैलीडोनिमेजस, कोनियम, कोडिअसमेजस. बल्वेरिस व वल्गैरिस, सासीपैरिल. कैन्थरिस. बेलाडोना व लेपेशिसि इत्यादि के नाम प्रमख है। इन औषधियों की शक्ति (पावर) और मात्रा रोगी की स्थिति व अवस्था के अनसार चिकित्सक के द्वारा ही निर्धारित की जाती है। कभी-कभी दवा का तनाव होने पर भी यदि उसकी मात्रा से और शक्ति का चुनाव सही नहीं हुआ है तो वह दवा सही होने पर भी पूर्ण लाभ देने में अक्षम होगी।