पित्ताशय की पथरी


पित्ताशय में पथरी की उपस्थिति एक विस्फोटक की तरह होती है जो किसी भी समय संकट उत्पन्न कर सकती है। अतः यह पता चलते ही कि पित्ताशय में पथरी है, इसका समुचित उपचार करा लेना चाहिए। जब पित्ताशय में पथरी बन गई तक काइ एसा आषाध नहा ह जो उस गलाकर या ताड़कर बाहर निकाल द। कभी-कभी ऐसा हो जाता है कि पथरी पित्तवाहिनी से होकर छोटी आंत में स्वतः चली जाती है। यह पथरी के छोटे आकार के कारण संयोगवश ही होता है। पित्ताशय में पथरी उत्पन्न होने पर उसका ऑपरेशन करके पथरी निकाल देना ही समचित उपचार है। पित्ताशय में पथरी बनने की एक आम जगह है। इसमें एक बार रोग हो जाने के        बाद यह शरीर के लिए संवेदनशील हो जाता है। पुनः इसमें पथरी बनने की अधिक संभावना      हो जाती है।                             


स रोग को पुनः न होने देने के लिए नियमित चया आर आहार-विहार इस प्रकार रखना चाहिए कि यह रोग फिर से उत्पन्न न हो। प्रायः प्रायः यह देखा गया है कि पित्ताशय में पथरी बनने के ' साथ ही शरीर में स्थूलता आ जाती है। इसके लिए नियमित व्यायाम, प्राणायाम, योगासन आदि 'करते रहना चाहिए। अब हम इस रोग के कारण, लक्षण, बचाव आदि के बारे में चर्चा करेंगे। हमें स्वस्थ रहते हुए ही यह प्रयास करना चाहिए कि हमें इस रोग का सामना न करना पडे। अर्थात् हमें उन कारणों से बचना चाहिए जिनसे पित्ताशय में पथरी बनना सम्भव है पित्ताशय :- हमारे उदर के दाई और ऊपर की तरफ यकृत के निचले भाग से लगा हुआ लगभग 4 इंच लम्बा गाजर के समान आकति का पित्ताशय होता है। इसका मुख्य कार्य यकत में बने पित्त को इकट्ठा करना हैइसमें लगभग 45 पित्त जमा रहता है। जब भोजन अमाशय में आगे बढ़ता है तो पित्ताशय से पित्त निकलकर भोजन में मिल जाता है, जिससे भोजन के वसा और प्रोटीन का पाचन होता है। स्वस्थ पित्ताशय 24 घंटे में 2-3 बार खाली हो जाता है। जब भोजन नहीं किया जाता है तो पित्त पित्ताशय में इकट्ठा होता रहता है। इसका जलीय अंश शरीर में पच जाता है, जिससे पित्त गाढ़ा होता चला जाता है। पित्त :- पित्त सुनहरे भूरे रंग का यकत स्राव है। इसका स्वाद कड़वा होता है। यह पाचक रस होते हए भी विष तल्य होता हैयह आंतों का चली उदीपक होता है तथा उन्हें क्रियाशील रखता है इसमें लगभग 80 प्रतिशत जलीय अंश होता है। इसमें लवण. रंजक. लेसेथिन व कॉलेस्ट्रॉल होता है। भोजन करने पर इसका उत्पादन ज्यादा हो जाता है। पित्ताशय में एकत्रित पित्त का कुछ अंश पाचन क्रिया में व्यय होता है। कुछ बाहर निकल जाता है तथा कछ शरीर में समा जाता है। आंतों में पहुंचकर यह भोजन का पाचन करने के साथ निद्राही खाने को सड़ने नहीं देता। पथरी :- पित्ताशय की पथरी पुरुषों की अपेक्षा रखना स्त्रियों में अधिक पाई जाती है। लगभग 40-50 चिपचिपा प्रायः न वर्ष की स्थूल शरीर वाली महिलाएं जो सी का कार्बोहाइड्रेट तथा वसायुक्त भोजन अधिक मात्रा में लेती हैं, उनमें पथरी बनने की अधिक निर्माण 'संभावना रहती है। पथरी बालू के कण, सरसों के , दाने से लेकर अखरोट व अंडे के आकार तक पित्त पर की हो सकती है। संख्या में 30-40 तक भी हो जात कारण :- पथरी बनने के निम्न कारण हो सकते हैं 1. पित्ताशय में पित्त अधिक समय तक रूका रहने के कारण 5-10 गुना अधिक मादा होने के बाद और भी गाढा हो जाए और उसमें जीवाणु का संक्रमण हो जाए तो पथरी बन जाती है। 2. व्यायाम न करने से, बैठे रहने से. स्थल शरीर वालों में तथा गर्भावस्था में पित्त अधिक देर तक संचित रहने से गाढ़ा हो जाता है जो धीरे-धीरे पथरी का निर्माण कर देता है 3. यकृत की विकृति के कारण पित्त का निर्माण ठीक प्रकार से न होने, पित्त में पित्त लवण का अनुपात कम होने या कॉलेस्ट्रॉल की मात्रा अधिक होने पर कॉलेस्ट्रॉल पित्ताशय में नीचे अवक्षेप के रूप में जमने लगता है। उसके ऊपर पुनः कैल्शियम की तह जम जाती है। इस प्रकार तह पर तह जमने से छोटी-छोटी पित्ताश्मरी बन जाती है। 4. गर्भावस्था तथा मधुमेह में भी कॉलेस्ट्रॉल की वृद्धि हो जाती है, जिस कारण पथरी निर्माण की संभावना बढ़ जाती है 5. असन्तुलित अप्राकतिक आहार-विहार भी पथरी बनने का मख्य कारण होता है। चॉकलेट, चाय, कॉफी, बिस्कट, फास्ट फूड, ब्रैड आदि में आक्जैविक एसिड की अधिकता होती है। हरी साग सब्जी कम खाना, अधिक मात्रा में भोजन, कब्ज होना. पानी कम पीना, मांसाहारी भोजन करने से यह रोग अधिक होता है। 6. अति निद्रा. मद्यपान, प्रदर रोग, मानसिक तनाव आदि के कारण मनुष्य यकृत रोगी हो जाता है। रोगी यकृत में तैयार हुआ पित्त विकारयुक्त, गाढ़ा और चिपचिपा होता है जो पित्ताशय में जमा होकर प्रदाह और शोथ पैदा कर देता है। दुषित पित्त सूखकर कड़ा हो जाता है और फिर पथरी का निर्माण हो जाता है। लक्षण :- जब पथरी पित्ताशय से निकलकर पित्त वाहिनी में पहुंचकर अटक जाती है तो पित्त के रास्ते में अवरोध के कारण असाध्य दर्द होता है। दर्द की लहरें कुछ अंतराल से उठती रहती हैं। कंसापीनाथ अपनाप कम भी हो जाती तो ठंडा पसीना छूटने लगता है। यह दर्द समय बीतने के साथ-साथ अपने आप कम भी हो जाता है। अरुचि और अपच हो जाता है। अमाशय में शोथ के कारण अमाशय और उसके आस-पास दर्द की अनुभूति होती है। ऐसी स्थिति में पीलिया के लक्षण भी प्रकट हो सकते हैं। चिकित्सा : वेदना के समय :- दर्द निवारक इंजेक्शन व वेदना शामक औषधि के प्रयोग से दर्द तो ठीक हो जाता है परन्तु दर्द के कारण पथरी तो अपनी जगह ही रहती है। गर्म पानी के टब में बैठने से पित्त-वाहिनी में फंसी पथरी निकल जाती है। जब तक दर्द दर न हो जाए गर्म पानी के टब में बैठे रहें। ठंडा पानी निकालकर मी दाल र नेश तौलिये का प्रयोग भी कर सकते हैं। गर्म पानी म की बोतल भी प्रयोग कर सकते हैं। स्वच्छ हवादार स्थान में पूर्ण विश्राम करें। ठीक होने तक उपवास करें। वमन हो तो बर्फ तून के तेल में एक चम्मच नींबू का रस मिलाकर प्रत्येक घंटे में पीते रहें। कुलथी की दाल का पानी पिएं। वेदना के बाद :- आहार-विहार का संयम करें तथा कब्ज न होने दें। पेड़ पर प्रतिदिन ठंडे-गर्म पानी की सेंक करते रहें। गर्म पानी में भीगा तौलिया कमर के चारों और नितिन की मालिश करना चाहिया में उपवास करें। दिन में केवल फलों का रस व नींबू पानी ही लें। दूध, मलाई, पनीर, घी आदि वसा युक्त पदार्थों का सेवन न करें। चिकनाई नाइ हित भोजन पथरी के रोगी को लाभप्रद होता है ताजा फल, कुलथी की दाल, साग सब्जी, मलाई रहित मट्ठा, शहद, फलों का सलाद, जामुन, पथरी रोग में लाभकारी है। मांसाहारी भोजन. तले-भने पदार्थ सखा मेवा कदापि न लेंमिर्च मसाला उत्तेजक पदार्थ तथा मादक द्रव्य का उपयोग बिल्कुल न करें। खीरा, गाजर, लौकी, पपीता, मूली, नींबू का रस का सवन कर। प्रातः उठकर खाला पट पाना पिए दोपहर में भोजन के साथ प्रतिदिन बाद दो चम्मच हिंग्वाष्टक चूर्ण लें तथा रात को सोते समय त्रिफला चूर्ण 5 ग्राम तथा हरीतकी चूर्ण 2 चम्मच गर्म पानी से लें। योगासन, प्राणायाम, व्यायाम नियमित रूप से करते रहें।